Book Title: Tattvopapplavasinha
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ १०६ न्याय दर्शनके प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम इन चारों प्रमाणोंके विशेष लक्षण ग्रन्थमें आए हैं और वे अक्षपाद के न्यायसूत्रके हैं। सांख्य दर्शनके विशेष प्रमाणोंमेंसे केवल प्रत्यक्षका ही लक्षण लिया गया है,२ जो ईश्वरकृष्णका न होकर वार्षगण्यका है। चौद्ध दर्शन प्रत्यक्ष और अनुमान इन दो प्रमाणोंको ही मानता है । ग्रन्थकारने उसके दोनों प्रमाणों के लक्षण चर्चाके वास्ते लिए हैं जो-जैसा कि हमने ऊपर कहा है--धर्मकीर्तिके हैं, पर जिनका मूल दिङ्नागके ग्रन्थामें भी मिलता है। मीमांसा दर्शनके प्रसिद्ध प्राचार्य दो हैं--कुमारिल और प्रभाकर । प्रभाकरको पाँच प्रमाण इष्ट हैं, पर कुमारिलको छह । प्रस्तुत ग्रन्थमें कुमारिलके छहों प्रमाणों की मीसांसाकी गई है, और इसमें प्रभाकर सम्मत पाँच प्रमाणोंकी मीमांसा भी समा जाती है। पौराणिक विद्वान मीमांसा सम्मत छह प्रमाणोंके अलावा ऐतिह्य और सम्भव नामक दो और प्रमाण मानते हैं जिनका निर्देश अक्षपादके सूत्रों तकमें भी है-वे भी प्रस्तुत ग्रन्थमें लिये गए हैं।" वैयाकरणों के अभिमत 'वाचकपद' के लक्षण और 'साधुपद' की उनकी व्याख्याका भी इस ग्रन्थमें खण्डनीय रूपसे निर्देश मिलता है । यह सम्भवतः भहरिके धाक्यपदीयसे लिया गया है। (३) यों तो ग्रन्थमें प्रसंगवश अनेक विचारों की चर्चा की गई है.जिनका यहाँपर सविस्तर वर्णन करना शक्य नहीं है, फिर भी उनमेंसे कुछ विचारोंवस्तुओंका निर्देश करना श्रावश्यक है, जिससे यह जानना सरल हो आएगा, कि कौन-कौनसी वस्तुएँ, अमुक दर्शनको मान्य और अन्य दर्शनोंको अमान्य होनेके कारण, दार्शनिक क्षेत्रमें खण्डन-मण्डनकी विषय बनी हुई हैं, और १. देखो, पृ० २७,५४,११२,११५ | २. पृ०६१। ३. पृ० ३२, ८३ । ४. ५८, ८२ १०६, ११२, ११६ । ५.पृ० ११३ । ६. न्यायसूत्र-२. २. १. ७. पृ० १११ । ८.पृ० १२० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31