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१०६ प्रयाससे किया है; पर नैयायिक, मीमांसक, जैन श्रादि अन्य दार्शनिकोंने उन्हींका खण्डन करने में अपना बड़ा बौद्धिक पराक्रम दिखलाया है ।
(४) यह खण्डन सामग्री, निम्नलिखित दार्शनिक साहित्य परसे ली गई जान पड़ती है
न्याय-वैशेषिक दर्शनके साहित्यमेंसे अक्षपादका न्यायसूत्र, वात्स्यायन भाष्य, न्यायवर्तिक, व्योमवती और न्यायमंजरी ।
मीमांसक साहित्यके श्लोकवार्तिक और बृहती नामक ग्रंथोंका आश्रय लिया जान पड़ता है।
बौद्ध साहित्यमेंसे प्रमाणवार्तिक, संबंधपरीक्षा, सामान्यपरीक्षा आदि धर्मकीर्तिके ग्रन्थोंका; तथा प्रज्ञाकर, धर्मोत्तर श्रादि धर्मकीर्तिके शिष्योंकी की हुई उन ग्रन्थों की व्याख्याओंका आश्रय लिया जान पड़ता है।
व्याकरण शास्त्रीय साहित्यमेंसे वाक्यपदीयका उपयोग किया हुआ जान पड़ता है। ___ जैन साहित्यमेंसे पात्रस्वामि या अकलंककी कृतियोंका उपयोग किये जानेका संभव है।
(५) जयराशिने अपने अध्ययन और मननसे, भिन्न-भिन्न दार्शनिकप्रमाणके स्वरूपके विषयमें तथा दूसरे पदार्थों के विषयमें, क्या-क्या मतभेद रखते हैं और वे किन-किन मुद्दोंके ऊपर एक दूसरेका किस-किस तरह खण्डन करते हैं, यह सब जानकर, उसने उन विरोधी दार्शनिकोंके ग्रन्थोंमेंसे बहुत कुछ खण्डन सामग्री संग्रहीत की और फिर उसके आधारपर किसी एक दर्शनके मन्तव्यका खण्डन, दूसरे विरोधी दर्शनोंकी की हुई युक्तियों के आधार पर किया;
और उसी तरह, फिर अन्तमें दूसरे विरोधी दर्शनोंके मन्तव्योंका खण्डन, पहले विरोधी दर्शनकी दी हुई युक्तियोंसे किया । उदाहरणार्थ-जब नैयायिकोंका खण्डन करना हुआ, तब बहुत करके बौद्ध और मीमांसकके ग्रन्थोंका आश्रय लिया गया, और फिर बौद्ध, और मीमांसक श्रादिके सामने नैयायिक और जैन
आदिको भिड़ा दिया गया। पुराणोंमें यदुवंशके नाशके बारेमें कथा है कि मद्यपानके नशेमे उन्मत्त होकर सभी यादव अापसमें एक दूसरेसे लड़े और मर मिटे । जयराशिने दार्शनिकों के मन्तव्योंका यही हाल देखा। वे सभी मन्तव्य दूसरेको पराजित करने और अपनेको विजयी सिद्ध करनेके लिए जल्पकथाके अखाड़ेपर लड़नेको उतरे हुए थे । जयराशिने दार्शनिकोंके उस जल्पवादमेसे अपने वितण्डावादका मार्ग बड़ी सरलतासे निकाल लिया और दार्शनिकोंकी खपडनसामग्रीसे उन्हींके तत्वोंका उपप्लव सिद्ध कर दिया ।
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