Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Vijay K Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 37
________________ अध्याय २ वनस्पत्यन्तानामेकम् ॥२२॥ [ वनस्पति अन्तानाम् ] वनस्पतिकाय जिसके अन्त में है ऐसे जीवों के अर्थात् पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के [ एकम् ] एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है। Up to the end of plants (there is only) one sense. कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादीनामेकैकवृद्धानि ॥२३॥ [ कृमिपिपीलिकाभ्रमर मनुष्यादीनाम् ] कृमि इत्यादि, चींटी इत्यादि, भ्रमर इत्यादि तथा मनुष्य इत्यादि के [ एकैक वृद्धानि ] क्रम से एक एक इन्द्रिय बढ़ती (अधिक-अधिक) है अर्थात् कृमि इत्यादि के दो, चींटी इत्यादि के तीन, भौंरा इत्यादि के चार और मनुष्य इत्यादि के पाँच इन्द्रियाँ होती हैं। The worm, the ant, the bee, and the man, etc., have each one more sense than the preceding one. संज्ञिनः समनस्काः ॥२४॥ [ समनस्काः ] मनसहित जीवों को [ संज्ञिन: ] सैनी कहते हैं। 24

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