Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Vijay K Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 130
________________ अध्याय - ८ कषायवेदनीय - ये चार भेदरूप मोहनीय कर्म के हैं और इसके अनुक्रम से [ त्रिद्विनवषोडशभेदाः] तीन, दो, नव और सोलह भेद हैं। वे इस प्रकार से हैं - [सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयानि ] सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय और सम्यमिथ्यात्वमोहनीय - ये दर्शन मोहनीय के तीन भेद हैं; [अकषायकषायौ ] अकषायवेदनीय और कषायवेदनीय ये दो भेद चारित्र मोहनीय के हैं; [ हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुन्नपुंसकवेदाः ] हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद - ये अकषायवेदनीय के नव हैं; और [अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्वलनविकल्पाः च] अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान तथा संज्वलन के भेद से तथा [ एकशः क्रोधमानमायालोभाः] इन प्रत्येक के क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार प्रकार - ये सोलह भेद कषायवेदनीय के हैं। इस तरह मोहनीय कर्म के कुल अट्ठाईस भेद हैं। The deluding karmas are of twenty-eight kinds. These are the three subtypes of faith-deluding karmas', the two types of conduct-deluding karmas The three subtypes of faith-deluding karmas are wrong belief, mixed right and wrong belief, and right belief slightly clouded by wrong belief. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 117

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