Book Title: Tattvartha Sutra Author(s): Umaswati, Umaswami, Kailashchandra Shastri Publisher: Prakashchandra evam Sulochana Jain USA View full book textPage 6
________________ D:\VIPUL\B001.PM65 (6) (तत्वार्थ सूत्र ************अध्याय-D अध्याय -D अनुक्रमणिका पृष्ठनं. प्रथम अध्याय विषय मंगलाचरण मोक्षका मार्ग सम्यग्दर्शन आदि के क्रम के विषय में शंका-समाधान सम्यग्दर्शन का लक्षण तत्त्वार्थ शब्द का अर्थ, सम्यग्दर्शन के दो भेद सम्यग्दर्शन कैसे उत्पन्न होता है? निसर्गज और अधिगमज सम्यग्दर्शन में अन्तर तत्त्वों के नाम तत्त्व सात ही क्यों? निक्षेपों का कथन नाम और स्थापना में भेद निक्षेपों का प्रयोजन तत्त्वों को जानने का उपाय प्रमाण और नय में भेद तत्त्वों को जानने के अन्य उपाय सम्यग्दर्शन के विषय में छह अनुयोग सम्यग्ज्ञान के भेद ज्ञान ही प्रमाण है सन्निकर्ष या इन्द्रिय प्रमाण नहीं है प्रमाण के भेद परोक्षका लक्षण, प्रत्यक्ष का लक्षण मतिज्ञान के नामान्तर स्मृतिका लक्षण (तत्त्वार्थ सूत्र **** ****** प्रत्यभिज्ञान के भेद और लक्षण चिन्ता या तर्क का लक्षण अभिनिबोध या अनुमान का लक्षण मतिज्ञान के उत्पत्ति के निमित्त इन्द्रिय शब्द व्युत्पत्ति मन अनिन्द्रिय क्यों मतिज्ञान के भेद अवग्रह आदि भेदों का लक्षण अवग्रह आदि ज्ञानों के भेद बहु बहुविध आदि का लक्षण बहु बहु विध आदि किसके विशेषण हैं अर्थस्य सूत्र की आवश्यकता व्यंजनावग्रह व्यंजनावग्रह सभी इन्द्रियों से नहीं होता मतिज्ञान के ३३६ भेद श्रुतज्ञान का स्वरूप और उसके भेद अवधि ज्ञान के भेद और उसके स्वामी मनः पर्यय के भेद और उनमें अंतर अवधि ज्ञान और मनः पर्यय ज्ञान में अन्तर मति ज्ञान और श्रुतज्ञान का विषय अमूर्तिक पदार्थ मतिज्ञान के विषय कैसे हैं? अवधि ज्ञान का विषय मनः पर्यय ज्ञान का विषय मनःपर्यय के विषय में शंका समाधान केवल ज्ञान का विषय एक साथ एक आत्मा में कितने ज्ञान रह सकते हैं तीन ज्ञान विपरीत भी होते हैं ज्ञानों के विपरीत होने का हेतुPage Navigation
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