Book Title: Tattvartha Sutra Author(s): Akhileshmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय आचार्य उमास्वाति-विरचित "तत्त्वार्थ-सूत्र" एक सुप्रसिद्ध तत्त्व-ग्रन्थ है। यह जितना लघु है, उतना विराट भी। जैन आचार्यों ने अपनी टीकाओं द्वारा इस ग्रन्थ को जितना पल्लवित किया है, उतना अन्य किसी को नहीं किया। क्योंकि इसमें जैन धर्म और जैन दर्शन के सभी विषयों का परिचय आचार्यश्री ने बड़ी ही सुगम शैली में दिया है। संस्कृत भाषा में 'तत्त्वार्थ-सूत्र' पर विशाल और विस्तृत टीकाएँ हैं। हिन्दी भाषा में भी इस पर विस्तृत विवचेन लिखे गए हैं। परन्तु मूलपाठ करने वालों के लिए और कण्ठस्थ करने वालों के लिए कोई सुन्दर संस्करण इसका उपलब्ध नहीं हो रहा था। इस अभाव की पूर्ति करने का हमारा संकल्प था। मुझे प्रसन्नता है, कि पण्डितरत्न मुनिश्री अमोलकचन्दजी महाराज 'अखिलेश' ने परिश्रम करके शुद्ध मूल पाठ और शुद्ध हिन्दी अर्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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