Book Title: Tattvagyan Smarika
Author(s): Devendramuni
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 4
________________ श्री वर्धमानस्वामिने नमः । Nnidin प्रकाशक की ओर से...... सुज्ञ विद्वज्जन एवं जिज्ञासु-वाचकों के समक्ष महत्वपूर्ण एक नई चीज भेटरुप लेकर हम आनन्दगौरव के साथ उपस्थित हो रहे हैं । जिसे पाकर जिज्ञासु-वाचक एवं तटस्थ-विद्वान जरुर ऐसी धन्यता का अनुभव करेंगे कि___ “भारतीय साहित्य में प्रायः अविचारित या करीबन उपेक्षित भूगोल-खगोल सम्बन्धी अनेक प्राचीन - अर्वाचीन विचारधारा का प्रस्तुतीकरण एवं भारतीय-आर्यसंस्कृति की अमूल्य विरासत की पहचान करानेवाले महत्त्वपूर्ण अनेक निबंधों के संग्रहस्वरुप "श्री तत्त्वज्ञान-स्मारिका" नामक विशालकाय ग्रन्थ की सर्वदेशीय उपयोगिता कितनी है ?" अत एव कुछ संस्कृतिप्रेमी-महानुभावों की सूचनानुसार उसी विशाल स्मारिका-ग्रन्थ को विषय विभाग एवं भाषा-विभाग की दृष्टि से विभक्त कर खंडानुसार छोटी-छोटी पुस्तिकाओं के रुप में विविधजिज्ञासुओं की इच्छारुचि को सन्तुष्ट करने के शुभ-आशय से पृथक पुस्तक के रूप में सुज्ञ-विद्वान एवं जिज्ञासु-वाचकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं । वास्तव में ! भारतीय-संस्कृति का प्राण अध्यात्मवाद एवं विज्ञान है ! किंतु वर्तमानकाल में भौतिकवाद-मिश्रित विज्ञान की नींव' पर पाश्चात्य-संस्कृति विकास पा रही है ! ! ! फलस्वरूप बचपन से ही शिक्षण के माध्यम पर भौतिकवाद एवं विज्ञान की चकाचौंध में आकर नवशिक्षित विद्वान एवं नई पीढी अज्ञानवश . एवं कालदोष के बल पर घर में रहे हुए निधानतुल्य अध्यात्मवाद-तत्त्वज्ञान के मर्म को समजने से वंचित हो रही है। इस निष्कर्ष को लक्ष्य में रख कर पू. आगमोद्धारक, आगमवाचनादाता, आगमसम्राट्, पू. ध्यानस्थ स्वर्गत आ. श्री आनन्दसागर-सूरीश्वरजी म. के पट्टप्रभावक पू. आ. श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी के परमविनेय तपोमूर्ति विशुद्धसंयमी शासनज्योतिर्धर पू. उपा. श्री धर्मसागरजी म. के शिष्य पू. पं. श्री अभयसागरजी म. गणीवर्यश्री ने पीछले ३४ साल से नई पीढी की धर्मश्रद्धा को डिगमिगानेवाले भूगोलखगोल के मौलिक तथाकथित-सिद्धान्तों को गहरे अभ्यास और संशोधन कर के गलत साबित किये, और वास्तविक स्थिति का परिचय देने हेतु शाश्वतप्रायः श्री सिद्धाचल-महातीर्थ की पवित्र-छाया में जैनआगम मन्दिर के पास भातेखाते के पीछे आतपर के रोड पर ८ एकड़ की विशाल जमीनपर ५० रुपयो के ब्यय से तैयार होने वाली जंबूद्वीप योजना की हमें प्रेरणा दी। फलतः पृथ्वी गोल नहीं-पृथ्वी घूमती नहीं" इस तथ्य को वैज्ञानिक ढंग से प्रमाणित करने हेतु १४ राजलोफ, तीर्थोलोक, मनुष्यक्षेत्र, जंबूद्वीप, भरतक्षेत्र, मध्यखंड एवं वर्तमान विश्व के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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