Book Title: Tap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 11
________________ श्रुतदान की परम्परा के स्मृति पुरुष श्री अमरचंदजी कोठारी यह संसार एक रंगमंच है। इस रंगमंच पर अनेकानेक कलाकार आते हैं और अपनी भूमिका अदा कर विदा हो जाते हैं। परन्तु कुछ कलाकार ऐसे भी होते हैं जो अपनी अमिट छवि जन मानस पर छोड़ जाते हैं। जिन शासन के मंच पर साधु-साध्वी तो आदरणीय एवं वंदनीय होते ही हैं परन्तु कुछ गृहस्थ भी ऐसे होते हैं जिन्हें समस्त संघ के द्वारा सम्माननीय दृष्टि से देखा जाता है। साधु-साध्वियों के लिए भी वे प्रेरणा रूप होते हैं। बाह्य वेश से वे भले ही साधु न हों परन्तु उनकी आंतरिक साधना किसी साधक पुरुष से कम नहीं होती। कलकत्ता समाज में एक ऐसे ही साधक पुरुष हैं श्री अमरचंदजी कोठारी। ___ कलकत्ता जैन समाज ही नहीं अपितु मानव सेवा से जुड़ा हुआ हर व्यक्ति अमरचंदजी को देव रूप मानता है। मन्दसौर (मध्य प्रदेश) निवासी श्री इंद्रचंदजी कोठारी के यहाँ सन् 1921 में आपका जन्म हुआ। व्यवसाय की दृष्टि से आप पारिवारिक कुछ सदस्यों के साथ कलकत्ता आए तथा आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का व्यापार प्रारम्भ किया। आज उम्र के नौ दशक पार करने के बाद भी आप व्यापार करते हैं एवं अपने व्यापार में Top पर हैं। अपनी तीन पीढ़ियों को आपने एक सूत्र में संयुक्त परिवार के रूप में पिरोकर रखा है। खरतरगच्छ जैन संघ कोलकाता के गठन होने के बाद से आप अध्यक्ष पद को अलंकृत कर रहे हैं। मानव सेवा हेतु गठित जैन कल्याण संघ के आप Founder Member हैं तथा वहाँ पर विभिन्न पदों पर भी रहे हैं। इसी के साथ आप अवध सेवा समाज के अध्यक्ष हैं। शिखरजी जैन म्यूजियम, जिनेश्वर सूरि फाउण्डेशन के मुख्य फाउण्डर मेम्बर्स में आपका भी समावेश है। 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की भावना के साथ आप परमार्थ एवं समाज

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