Book Title: Syadvada Manjari Author(s): Jagdishchandra Jain Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal View full book textPage 9
________________ पृष्ठ ११६ १२० १२० १२२ १२३ १२४ १२६ १२८ १२८ १२९ १३३ १३४ १३५ १३८ १४२ १४४-१९१ विषय अद्वैतवादका खंडन श्लोक १४ कथंचित् सामान्यविशेपरूप वाच्यवाचक भावका समर्थन एकान्त सामान्यवादी अद्वैतवादी, मीमांसक और सांख्योंका पूर्वपक्ष एकान्त विशेपवादी बौद्धोंका पूर्वपक्ष स्वतंत्र सामान्य-विशेषवादी न्याय-वैशेषिकोंका पूर्वपक्ष उक्त तीनों पक्षोंका खंडन शब्दका पौद्गलिकत्व आत्माका कथंचित् पौद्गलिकत्व शब्द और अर्थका कथंचित् तादात्म्य संबंध सम्पूर्ण पदार्थोमें भावाभावत्वकी सिद्धि अपोह, जाति विधि आदि शब्दार्थका खंडन श्लोक १५ सांख्योंके सिद्धान्तोंपर विचार सांख्योंका पूर्वपक्ष पूर्वपक्षका खंडन सांख्योंकी अन्य विरुद्ध कल्पनायें श्लोक १६-१९ श्लोक १६ सौत्रांतिक, वैभाषिक और योगाचार बौद्धोंके सिद्धांतोंका खंडन प्रमाण और प्रमिति अभिन्न है-पूर्वपक्षका खंडन क्षणिकवाद और उसका खंडन ज्ञान पदार्थसे उत्पन्न होकर पदार्थको जानता है-खंडन ज्ञानाद्वैत-पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष श्लोक १७ शून्यवादियोंका खंडन प्रमाता, प्रमेय, प्रमाण और प्रमितिकी असिद्धि-पूर्वपक्ष उत्तरपक्ष आत्माकी सिद्धि सर्वज्ञकी सिद्धि प्रमेय, प्रमाण और प्रमितिकी सिद्धि श्लोक १८ क्षणिकवादमें कृतप्रणाश आदि दोष क्षणिकवादका परिवर्तित रूप श्लोक १९ वासना और क्षणसंतति भिन्न, अभिन्न, और अनुभय रूपसे असिद्ध बौद्धमतमें वासना ( आलयविज्ञान ) में दोष श्लोक २० चावकिमतपर विचार केवल प्रत्यक्षको प्रमाण माननेवाके चार्वाकौका खंडन भौतिकवादका खंडन श्लोक २१-२८ स्याद्वादको सिद्धि श्लोक २१ प्रत्येक वस्तुमें उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यकी सिद्धि श्लोक २२ प्रत्येक पदार्थमें अनन्त धर्मात्मकता श्लोक २३ सप्तभंगीका प्ररूपण मिथ्यादृष्टि द्वादशांगको पढ़कर भी उसे मिथ्याश्रुत समझता है १४४ १४८ १५२ १५६-५९ १६८-१७८ २६९ १७१ १७२ १७६ १७७ १७९ १८५ १८६-१९१ १८८ १९२-१९६ १९२ १९४ १९६-२५५ १९६ २०० २०४-२२१ २०६Page Navigation
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