Book Title: Syadvada Manjari
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 7
________________ विषयानुक्रमणिका १-२७० विषय प्राक्कथन-लेखक-डाक्टर भिक्खनलाल आत्रेय एम. ए., डी. लिट, ( भूतपूर्व ) दर्शनाध्यापक, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय प्रथम आवृत्ति की भूमिका प्रस्तुत संस्करणका संक्षिप्त परिचय द्वितीय आवृत्ति की भूमिका ग्रन्थ और ग्रंथकार हेमचन्द्र मल्लिषेण जैनदर्शनमें स्याद्वादका स्थान स्याद्वादका मौलिक रूप और उसका रहस्य स्याद्वादपर एक ऐतिहासिक दृष्टि स्याद्वादका जैनेतर साहित्यमे स्थान स्याद्वाद और समन्वयदृष्टि स्याद्वादमंजरीका अनुवाद टीकाकारका मंगलाचरण श्लोक १ अवतरणिका अनन्तविज्ञान आदि भगवानके चार विशेषण चार मूल अतिशय उक्त विशेषणोंकी सार्थकता श्रीवर्धमान आदि विशेषणोंकी सार्थकता श्लोकका दूसरा अर्थ श्लोक २ भगवानके यथार्थवादका प्ररूपण श्लोक ३ भगवानके नयमार्गकी महत्ता श्लोक ४-१० न्यायवैशेषिकदर्शनपर विचार श्लोक ४ सामान्यविशेषवाद श्लोक ५ नित्यानित्यवाद दीपकका नित्यानित्यत्व अंधकारका पौद्गलिकत्व आकाशमें नित्यानित्यत्व नित्यका लक्षण पातंजलयोग और वैशेषिकके नित्यानित्यवादका समर्थन एकान्त नित्यानित्यवादमें अर्थक्रियाका अभाव श्लोक ६ ईश्वरके जगत्कर्तृत्वपर विचार ईश्वरको जगत्कर्ता सिद्ध करने में पूर्वपक्ष पूर्वपक्षका खंडन स10000०-०-rrrror 94 १३-८६

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