Book Title: Syadvad Rahasya Author(s): Yashovijay Mahopadhyay Publisher: Bharatiya Prachyatattv Prakashan Samiti View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय निवेदन परमपूज्य सिद्धान्तमहोदधि आचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रेमसरिश्वर महाराज की पुनित प्रेरणा से नूतन प्रथित कर्भसाहित्य के प्रन्थों के प्रकाशन के लिये हमारी समिति की स्थापना हुई थी । किन्तु उसका उद्देश्य केवल कर्मसाहित्य के ग्रन्थों का प्रकाशन मात्र न था किन्तु आर्यदेश में उपलब्ध प्राचीन बहुमूल्य ग्रन्थों के प्रकाशन का भी ध्येय था । सदभाग्य से प. पू. मुनिप्रवर श्री जयघोषविजय महाराज तथा पू. मुनिराज श्री हेमचन्द्र विजय महाराज की प्रेरणा से प्राचीन जीर्ण-दुर्लभ्य-हस्तप्रतों को नवजीवन देने की भावना से प्राचीन प्रतों के पुनर्लेखन करवाने द्वारा जीर्णोद्धार का कार्य शुरु किया । अनेक जैनसंघों के ज्ञाननिधि में से तथा उदार गृहस्थो से इस कार्य में बहुमूल्य द्रव्य सहाय प्राप्त हुई जिसके लिये हम उन सबके सदा के लिये आभारी हैं। आशा है इस कार्य में दिन प्रतिदिन द्रव्यादि द्वारा सहाय देकर जैन संघ अगणित पुण्योपार्जन करता ही रहेगा। पू. मुनि भगवन्त श्री जयघोष विजय महाराज का मार्गदर्शन इस कार्य में सदा हमें प्राप्त होता रहा । आपने अनेक ज्ञानभंडारों का स्वयं निरीक्षण करके तथा जहाँ स्वयं न पहुँच सके वहाँ से ग्रन्थभंडारों की सुचियाँ मँगवा कर उसमें से चुनकर पुनलेखन के लिये योग्य प्रन्थों की हस्त प्रतियाँ मँगवाई । आज तक प्रायः सौ से भी अधिक ग्रन्थों को नवजीवन दिया गया है-जो जिनागम-शास्त्रप्रेमी वर्ग के लिये अवश्य अनुमोदनीय है। प्राचीन हस्तप्रतों के जीर्णोद्धार के कार्य के साथ यह भी एक आशय रहा कि यदि ऐसे ग्रन्थों की प्राप्ति हो जिन का मुद्रण अभी तक न हुआ हो तथा स्वाध्याय के लिये अति आवश्यक हो ऐसे ग्रन्थों का विद्वान् मुनिगण के पास सुवाच्य सम्पादन करवा कर मुद्रण के द्वारा प्रकाशित करना । हमारे इस आशय के अनुरूप अनेक ऐसे ग्रन्थरत्न प्राप्त हुए जिनका प्रकाशन करना उचित लगा। उनमें सबसे प्रथम उपाध्याय यशोविजय विरचित 'स्याद्वादरहस्य' ग्रन्थ का प्रकाशन करने के लिये प्रयत्न किये गये । ६ मास पहले लघुस्याद्वादरहस्य के प्रकाशन के बाद उपाध्याय यशोविजय विरचित कतिपय प्रकीर्ण वादों के संग्रह रूप एक वादसंग्रह प्रन्थ का भी प्रकाशन किया गया । अधुना लघु-मध्यम-बृहत् तीनों स्याद्वादरहस्य का एक साथ प्रकाशन का अमूल्य अवसर हमें प्राप्त हुआ है जो हमारे लिये अति हर्ष का विषय है। जिन महानुभावों ने इस कार्य में हमें भावपूर्ण सहयोग दिया हैं उनके उस कार्य का हम कृतज्ञतापूर्वक अनुमोदन करते हैं। सहयोग देने वालों में विशेषतः उल्लेखयोग्य जो हैं उनके सहयोग को यहाँ नामशः याद करना अनुचित न होगा।Page Navigation
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