Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra Author(s): Kanaknandi Acharya Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan View full book textPage 5
________________ दोषों से रहित हैं, अनंत गुणों के समुद्र हैं, मोक्षमार्ग का उपदेश देने वाले हैं और देवाधिदेव श्री जिनेन्द्रदेव हैं ऐसे अरहंत देव के लिए मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ। हे देवाधिदेव ! हे परमेश्वर ! हे वीतराग ! हे सर्वज्ञ ! हे तीर्थंकर ! हे सिद्ध ! हे महानुभव ! हे तीनों लोकों के नाथ ! हे जिनेन्द्र देव श्री वर्धमान स्वामिन् मैं आपके दोनों चरण कमलों की शरण को प्राप्त होता हूँ। देवाधिदेव ! परमेश्वर ! वीतराग ! सर्वज्ञ ! तीर्थंकर ! सिद्ध ! महानुभाव ! त्रैलोक्यनाथ ! जिनपुंगव ! वर्धमान ! स्वामिन् ! गतोऽस्मि शरणं चरणद्वयं ते ॥9॥ मद, हर्ष - द्वेष को जीतने वाले मोह और परिषहों को जीतने वाले : कषायों को जीतने वाले और मत्सरता को जीतने वाले, भगवान जिनेन्द्र देव सदा जयशील हों । 2 जितमदहर्षद्वेषा, जितमोहपरीषहा, जितकषायाः । जितजन्ममरणरोगा, जितमात्सर्या, जयन्तु जिना: ॥10॥ जयतु जिन! वर्द्धमानस्त्रिभुवनहितधर्मचक्रनीरजबंधुः । त्रिदशपतिमुकुटभासुर, चूड़ामणिरश्मिरंजितारुणचरणः ।।11।। जो श्री वर्धमान स्वामी तीनों लोकों का हित करने वाले, धर्मचक्ररूपी कमलों के लिए सूर्य के समान हैं और जिनके अरुण ( लाल रंग के) चरण कमल इन्द्र के मुकुट में दैदीप्यमान चूड़ामणि रत्न की किरणों से और भी सुशोभित हो रहें हैं, ऐसे श्री वर्धमान स्वामी सदा जयशील हों। Jain Education International जय, जय, जय ! त्रैलोक्यकाण्ड शोभि शिखामणे ; नुद, नुद, नुद, स्वान्तध्वान्तं जगत्कमलार्क ! नः । नय, नय, नय, स्वामिन्! शांतिं नितान्तमनन्तिमां, नहि नहि, नहि त्राता लोकैकमित्र ! भवत्परः ॥12॥ हे भगवन् ! आप तीनों लोकों में अत्यन्त सुशोभित होने वाले शिखामणि For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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