Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan

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Page 4
________________ प्रार्थना श्रीमत्परमगंभीर स्याद्वादमोघलाञ्छनम्। जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य, शासनं जिनशासनम् ॥3॥ जो अनेक अन्तरंग और बहिरंग लक्ष्मियों से भरपूर है और अत्यन्त गम्भीर स्याद्वाद ही जिसका सार्थक चिन्ह है, ऐसे श्री त्रैलोक्यनाथ का शासन श्री जैन शासन, चिरकाल तक जीवित रहो। श्रीमुखालोकनादेव श्रीमुखालोकनं भवेत्। आलोकनविहीनस्य, तत्सुखावातयः कुतः॥4॥ आज श्री जिनेन्द्र देव का मुख देखने मात्र से मुक्ति रुपी लक्ष्मी का मुख दिखाई देता है.भला जो श्री जिनेन्द्र देव के मुख का दर्शन नहीं करते उनको यह सुख कहाँ से मिल सकता है। _ नमोनमः सत्वहितंकराय, वीराय भव्याम्बुजभास्कराय। अनन्तलोकाय सुरार्चिताय, देवाधिदेवाय नमो जिनाय ॥7॥ - जो भगवान वर्धमान स्वामी समस्त प्राणियों का भला करने वाले हैं भव्य रूपी कमलों को सूर्य के समान प्रफुल्लित करने वाले हैं, अनंत लोक, अलोक को देखने वाले हैं, देवों के द्वारा पूज्य हैं और देवों के भी परम देव ..' हैं, ऐसे अरहंत देव महावीर स्वामी के लिए मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ। .. नमो जिनाय त्रिदशार्चिताय, _ विनष्टदोषाय गुणार्णवाय। विमुक्तिमार्ग प्रतिबोधनाय, देवाधिदेवाय नमो जिनाय॥8॥ जो भगवान अरहंत देवों के द्वारा पूज्य हैं, क्षुधा, तृषा आदि अठारह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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