Book Title: Swadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par Author(s): Rajiv Dikshit Publisher: Swadeshi Prakashan View full book textPage 9
________________ प्रकृति बनती है। सबसे उत्तम प्रकृति मानी जाती है : वायु प्रकृति नहीं हों, पित्त प्रकृति मध्य हो और कफ प्रकृति हो ऐसे व्यक्ति उत्तम माने जाते हैं। दो प्रकृति को मिलाकर भी मनुष्य प्रकृतियाँ बनती हैं। जैसे वात एवं पित्त को मिलाकर वात पित्त प्रकृति बनती है। इसी तरह वात और कफ को मिलाकर वातकफज़ प्रकृति बनती है। पित्त और कफ को मिलाकर पित्तकफज प्रकृति बनती है। सबसे अच्छी प्रकृति के मनुष्य वे होते हैं, जिनके शरीर में वात, पित्त और कफ तीनों सम होते हैं। विश्लेषण : आयुर्वेद में तीनों दोषों में साम्यता को स्वस्थ होने का आधार माना है। अर्थात जिसमें वात, पित्त, कफ तीनों दोषोंकी समानता है, वह स्वस्थ है। इन तीनों दोषों को मिलाकर 7 अन्य प्रकृतियाँ बनती हैं। ये अन्य 7 प्रकृतियाँ रोगों का अधिक कारण बनती हैं। बचपन से ही जिसकी वात प्रकृति है, उसे ऐसे खान-पान से बचना चाहिए तो वायु को बढ़ाता हो। इसी तरह जिसकी पित्त प्रकृति बचपन से है, उसे ऐसे खान-पान से बचना चाहिए, जो पित्त को बढ़ाता हो। यदि किसी की बचपन से कफ प्रकृति है तो उसे ऐसे खान-पान से बचना चाहिए जो कफ को बढ़ावा देता हो। वात प्रकृति के व्यक्ति को सूखे वातावरण से और ठण्डे स्थानों - से बचना चाहिए। पित्त प्रकृति के व्यक्ति को गरम तासीर की वस्तुओं के खान-पान से बचना चाहिए। कफ प्रकृति वालों को भारी और चिकनाई युक्त वस्तुओं के खान पान से बचना चाहिए। - तंत्र रूक्षो लघुः शीतः खरः सूक्ष्मश्रलोडनिलः अर्थ : वायु रूक्ष (सूखी), लघु, शीत (ठण्डी), खर, सूक्ष्म और हमेशा चलायमान - गुण वाली होती है। विश्लेषण : वायु वास्तव में शीतल (ठण्डी) नहीं होती है। लेकिन जब वायु ठण्डे द्रव्यों के साथ संयोग करे तो शीतल हो जाती है। जैसे पहाड़ों पर बर्फ पड़ने के बाद वहाँ से चलने वाली वायु शीतल हो जाती है। इसी तरह यदि गर्म वातावरण है या सूर्य प्रकाश अधिक है तो वायु गर्म होकर चलती है। इसलिये शीत ऋतु में वायु हमेशा ठण्डी चलती है और ग्रीष्म ऋतु में वायु हमेशा गर्म चलती है। वायु में अपना शीत और गर्म गुण प्रत्यक्ष नहीं होता है। प्रत्यक्ष रूप से वायु जिसके सम्पर्क में आती है, वही गुण धारण कर लेती है। यदि कोई व्यक्ति ठण्डे स्थान में निवास करता है तो वायु (वात) बढ़ती है। इसी तरह यदि कोई व्यक्ति शीत द्रव्यों का सेवन करता है तो भी वायु बढ़ती है। तीव्र वायु में बैठने से शरीर की धातुओं में कमी आती है, इससे शरीर में रूक्षता (रूखापन) आता है। वायु के प्रभाव से शरीर में खारापन भी आता है। 8Page Navigation
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