Book Title: Surdipikadi Prakaran Sangraha
Author(s): Purvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
Publisher: Mangaldas Lalubhai

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Page 10
________________ Poonam-08DGD/DavosanapanasamuhamaseDos | तो या पुस्तक अनुक्रमे तेने वांची संनळावq. तमे जे वातनी गम पामो नहि ते माह्या पुरुष पासेथी समजी लेजो समजवामां थाळस | | के मनमा शंका करशो नहि. तमारा श्रात्मानुं आथी हित थाय. तमने ज्ञान, शान्ति, थानंद | | मळे, तमो परोपकारी, दयालु, क्षमावान, विवेकी अने बुद्धिशाळा था एवी शुन याचना श्र. ईत नगवान् कने करी था पाठ पूर्ण करुंडं. - - ॥ पुस्तक प्रकट थवानुं प्रयोजन.॥ __ था पंचम कालनी अंदर विषय कषायनी लोलुपताने लीधे के धन धान्यादिनो लान | प्राप्त करवानी धामधूमने लीधे महान् पुस्तको (आगमो-सिद्धांतो ) ले सांजली विचारी मनन जेटलो अवकाश अने समजशक्ति हाथ न होवाथी जैनागमनी अंदरनु रहस्य आपणने प्राप्त थश् शकतुं नथी. केमके सागर समान अगाध जावनयाँ सूत्रोने ध्यानपूर्वक अवलोकवां ए कंश न्हानीशूनी वात नथी. महान् नूमंमलमांनी पूर रहेली के श्रागमनीअगम सूक्ष्म वस्तुनु नि-|| PDATEss/astraamaaooooos

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