Book Title: Surdipikadi Prakaran Sangraha
Author(s): Purvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
Publisher: Mangaldas Lalubhai

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Page 9
________________ - - Twe eteoassaswatestanmaterateamANatovi0/03 ॥ वांचनारने जलामण ॥ वांचनार ? हुं थाजे तमारा हस्तकमळमां श्रावुलु. मने यत्नपूर्वक वांचजो, मारां कहेलां सत्वने हृदयमा धारण करजो, हुँ जे जे वात कहुं ते ते विवेकथी विचारजो; एम करशो तो तमे | ज्ञान, ध्यान, नीति विवेक, सद्गुण आत्मशान्ति पामी शकशो. तमो जाणता हशो के केटलाक अज्ञान मनुष्यो नहि वांचवा योग्य पुस्तको वांचीने | पोतानो वखत खो दे ले अने अवळे रस्ते चली जाय , आ लोकमां अपकीर्ति पामे ने तेमज परखोकमां नीची गतीए जाय . - तमो कोई पण प्रकारे श्रा पुस्तकनी श्राशातना करशो नहि ! तेने फामशो नहि, माघ पामशो नहि, के बीजो कोइ पण रीते बगामशो नहि. विवेकथी सघळु काम खेजो. विचक्षण पुरुषो ए कधू डे के-ज्यां विनय विवेक त्यांज धर्म बे. तमने एक ए पण नलामण ले के जेठने वांचतां नहि श्रावस्तुं होय अने तेनी श्छा होय conceaucoues corts

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