Book Title: Surdipikadi Prakaran Sangraha
Author(s): Purvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
Publisher: Mangaldas Lalubhai
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रीक्षण करवा माटे तो खास उमदा पुर्बीननीज जरूर पसे बे. परंतुं तेवी दुर्वीनरूप ज्ञानचक्कु आपणां सतेज न होवाथो आपण तेवा सूक्ष्म विचारोने अंश मात्र पण जाणवा नाग्यशाली थता नथी.
आपणी आ अमचणने ध्यानमां लश् अगाउथी ते श्रुतसमुज्नुं मंथन करी आपणे समजी शकीए तेवी नाषामां आपणा परोपकारी पूर्वाचार्योए पृथक् पृथक् सत्य वार्ताउनुं रहस्य जाहे. रमां श्राणी सागरने गागरमा समावी दीधेल . जेथो गागरमां समायला सागर सम रहस्यनुं
अवकाश पूर्ण अवगाहन करी शकवा वखते शकिमान् थर शक्तिये. एज हेतुने अवलंबी आ | विविध विषयविजूषित प्रथम प्रकरणगुनने प्रसिद्धमा लाववा यत्न श्रादरेलो .
महान् खुलासानी प्रमाणिक चर्चा आपणा अल्पमतिवंत अल्पसमयमां समजी शकीए | एवां प्रकरणो रचवाना संबंधमां पूर्वाचार्योए उगवेलो अपार परिश्रम सफल थवा श्रापणे ए प्रकरणो नणवां-बांचवां-सांनत्रवां के मनन करवां ए अवश्य आपणुं कर्त्तव्य कर्म समजवू
6.ART.PRODadaBars

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