Book Title: Sunil Prakrit Samagra Author(s): Udaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 2
________________ सुनील प्राकृत समग्र आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज द्वारा सन् 2003 से 2015 के मध्य रची गयी प्राकृत कृतियों का प्रतिनिधि संग्रह है। प्रस्तुत संस्करण में दस प्राकृत ग्रन्थों का समायोजन किया गया है। यथाथुदी संगहो-प्राकृत भाषा में, अनेक छन्दों का प्रयोग करते हुए तीर्थंकरों व पंचपरमेष्ठियों की स्तुतियाँ। णीदी संगहो–कुल 161 अनुष्टुप छन्दों में धार्मिक व व्यवहारिक नीतियों का प्राकृत छायात्मक प्रस्तुतिकरण। भावणासारो-जैन शास्त्रों में वर्णित वैराग्यवर्धिनी बारह भावनाओं का 72 छन्दों में आकर्षक वर्णन। अज्झप्पसारो-अध्यात्मसार में कुल 102 गाथा छन्दों में अध्यात्म का सारगर्भित प्रतिपादन। समयसार का स्मरण करनेवाला ग्रन्थ। णियप्पज्झाणसारो-निजात्मध्यानसार में केवल 55 अनुष्टुप छन्दों में ध्यान, ध्याता, ध्येय व ध्यान के फल का सुन्दर विवेचन। भावालोयणा-अपने दोषों की आलोचना कराते 25 उपजाति छन्दों की द्वात्रिंशति का स्मरण कराती रचना, जो सामयिक व प्रतिक्रमण में भी पठनीय है। वयणसारो-वचनसार वस्तुत: सारभूत वचनों का 57 अनुष्टुप छन्दों में प्राकृतमयी प्रस्तुतिकरण है। सम्मदी सदी-आचार्यश्री सन्मतिसागरजी महाराज के गुणों का बखान करती 101 अनुष्टुप छन्दोबद्ध कृति। भद्दबाहुचरियं-भगवान महावीर के लगभग 162 वर्ष पश्चात हुए पंचम श्रुतकेवली श्री भद्रबाहु स्वामी व चन्द्रगुप्त का प्राकृत गद्य में आकर्षक परिचय। बारह-भावणा-केवल 12 बसन्ततिलका छन्दों में रचित नित्य पाठ योग्य रचना।Page Navigation
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