Book Title: Sudansan Chariu
Author(s): Nayanandi Muni, Hiralal Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa

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Page 15
________________ ( १४ ) ग्रंथ के संबन्ध में कवि ने कुछ और विशेष महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है । यहाँ उन्होंने कहा है कि अवंती देश की धारा नगरी में जब त्रिभुवन नारायण श्रीनिकेत नरेश भोजदेव का राज्य था, तभी उसी धारा नगरी के एक जैन मन्दिर के महाविहार में बैठकर उन्होंने वि० संवत् ११०० में इस सुदर्शनचरित्र की रचना की । स्पष्ट ही यह उल्लेख मालवा के परमार वंशी सुप्रसिद्ध नरेश भोजदेव का है, जिनके राज्यकाल के शिलालेख ई० सन् १०२० से २०४७ अर्थात् संवत् १०७७ से ११०४ तक के पाये जाते हैं तथा जिनका राज्य राजस्थान में चित्तौड़ से लेकर दक्षिण में कोंकण व गोदावरी तक विस्तीर्ण था । इनकी ख्याति विद्वन्मंडली के संरक्षण तथा संस्कृत - प्राकृत भाषाओं के साहित्य सृजन के लिए विशेष रूप से पायी जाती है । वे स्वयं सरस्वतीकंठाभरण जैसे विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थों के रचयिता हैं । उनके राज्यकाल में अनेक जैन ग्रंथों की रचना हुई पायी जाती हैं । कथावस्तु प्रस्तुत सुदंसणचरिउ कथात्मक काव्य है, जिसकी रचना विशेष रूप से जैनधर्म के सुप्रसिद्ध पंचनमोकार मंत्र के जाप का पुण्य-प्रभाव प्रगट करने के लिये हुई है। ग्रंथ में बारह संधियां हैं । प्रथम संधि में नमोकार मंत्र का पाठ करके उसके द्वारा एक ग्वाले के सुदर्शन सेठ के रूप में जन्म पाने का वर्णन करने की प्रतिज्ञा की गयी और महावीर जिनेन्द्र की वंदना के पश्चात् जंबूद्वीप, मगधदेश, राजगृह नगर तथा वहां के राजा श्रेणिक का वर्णन किया गया है । तदुपरांत विपुलाचल पर्वत पर भ० महावीर की समोशरण रचना, राजा द्वारा उनकी वंदनायात्रा स्तुति एवं गौतम गणधर से तीर्थंकर, त्रेसठशलाका पुरुषों संबंधी प्रश्न किये जाने पर गणधर द्वारा उनके समाधान का वर्णन है । ( संधि - १) । राजा श्रेणिक ने गौतम गणधर से दूसरा प्रश्न पंचनमोकार मंत्र के फल के संबंध में किया । इसके उत्तर में गौतम गणधर ने त्रैलोक्य का वर्णन करके अंगदेश चंपानगरी, राजा धाईवाहन तथा वहां के निवासी सेठ ऋषभदास उनकी पत्नी अर्हद्दासी तथा उनके सुभग नामक ग्वाले का वर्णन किया । इस ग्वाले को एक बार वन में मुनिराज के दर्शन हुए और उनसे उसने नमोकार मंत्र का उपदेश पाया उस मंत्र को वह निरंतर उच्चारण करने लगा । सेठ ने उसकी बात सुनकर उसे मंत्र का माहात्म्य समझाया और धर्मोपदेश भी दिया। एक बार वह गोप गंगा नदी में जल क्रीड़ा कर रहा था, तभी एक ठूंठ से आहत होकर उसी मंत्र का स्मरण करते हुए उसका देहावसान हो गया । ( संधि - २ ) । इधर सेठानी ने एक स्वप्न देखा, जिसका फल जानने के लिये पति-पत्नी जिन मंदिर को गये। वहां एक मुनिराज ने उस स्वप्न के फलस्वरूप उन्हें पुत्र प्राप्ति का शुभ समाचार सुनाया । यथासमय सेठानी ने एक अति सुंदर व शुभ लक्षणों से युक्त पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम सुदर्शन रखा गया। जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया । बाल-क्रीड़ा करता हुआ सुदर्शन कुछ बड़ा हुआ ।

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