Book Title: Sudansan Chariu
Author(s): Nayanandi Muni, Hiralal Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa

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Page 18
________________ ( १७ ) व्याघ्र नामक क्रूर भील, श्वान तथा सुभग गोपाल इन तीन पूर्वभवों का वर्णन किया और बतलाया कि किस प्रकार वह नमोकार मंत्र के प्रभाव से सुदर्शन सेठ हुआ है। उसी प्रकार जो व्याघ्री भील की पत्नी थी, वह एक धोबी की पुत्री हुई और विधवा होकर निशि-भोजन त्याग व्रत के फलस्वरूप वह उसकी मनोरमा नामक भार्या के रूप में जन्मी। मुनि का धर्मोपदेश सुनकर सुदर्शन ने मुनि के महाव्रत धारण किये। (संधि-१०)। सुदर्शन के पूर्वभव तथा मुनि-दीक्षा लेने का समाचार सुनकर चम्पा के राजा धाईवाहन को भी वैराग्य हो गया और उन्होंने भी अपने पुत्र को राज्य देकर मुनिव्रत धारण किये । इसी प्रकार उनकी रानियों तथा नगर की अन्य नारियों ने भी व्रत धारण किये । सुदर्शन मुनि कठोरता से व्रत पालन करने लगे। वे विहार करते हुए पाटलिपुत्र पहुँचे, जहाँ पंडिता ने देवदत्ता गणिका को उनका परिचय कराया। गणिका ने छल से उन्हें अपने गृह में प्रवेश कराकर कपाट बन्द कर दिये और मुनि को प्रलोभित करने की गणिकाने सुलभ समस्त चेष्टाएँ की। अन्त में निराश होकर उसने उन्हें श्मशान में जा डाला। वहाँ जब वे ध्यानस्थ थे, तभी एक देवांगना का विमान उनके ऊपर आकर अचल हो गया। देवांगना रुष्ट हुई। और मुनि को देखकर उसे अपने अभया रानी के पूर्वजन्म का स्मरण हो आया। उसने अपनी वैक्रियिक ऋद्धि से मुनि के चारों ओर घोर उपसर्ग करना आरम्भ किया। भूतों और बैतालों की कुत्सित लीलाएँ होने लगी, किन्तु फिर भी सुदर्शन मुनि स्थिर रहे। इसी बीच एक रक्षक व्यंतर ने आकर उस व्यंतरी को ललकारा और उसे पराजित कर भगा दिया। (सन्धि -११)। ___ कुछ समय पश्चात् सुदर्शन मुनि के चार घातिया कमों का नाश हो गया। और उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। देवलोक से इन्द्र ने आकर उनकी स्तुति की और कुबेर ने समोशरण की रचना की । केवली के अतिशय तथा उनके उपदेश को देख सुनकर उस व्यंतरी को भी वैराग्य भाव हो गया और उसने तथा अन्य नर-नारियों ने सम्यक्त्व भाव धारण किया। इस प्रकार पंच नमोकार मंत्र के पुण्य-प्रभाव का वर्णन कर गौतम स्वामी ने राजा श्रेणिक से कहा कि कोई भी अन्य नर-नारी इस मन्त्र की आराधना द्वारा सांसारिक बैभव व मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है। यह सुनकर मगधेश्वर ने जिनेन्द्र की स्तुति की और विपुलाचल से उतरकर अपने राजभवन को गमन किया। (संधि-१२) । कथा की पूर्व परम्परा प्रस्तुत ग्रन्थ के कथानक से स्पष्ट है कि उसकी केन्द्रीय घटना एक स्त्री के परपुरुष के ऊपर मोहासक्त होकर उसका प्रेम प्राप्त करने का एक उत्कट प्रयत्न करना है। यह कथातत्व सांसारिक जीवन का प्रायः एक शाश्वत अंश है और उसके दृष्टान्त प्राचीनतम ग्रन्थों से लेकर वर्तमानकालीन साहित्य तक में पाये जाते हैं। यहाँ ऐसे ही कुछ आख्यानों की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है।

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