Book Title: Sudansan Chariu
Author(s): Nayanandi Muni, Hiralal Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa

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Page 16
________________ ( १५ ) उसने नाना विद्याएं और कलाएं सीखीं और कामदेव जैसा यौवन प्राप्त किया। उसे देख नगर की नारियां उस पर मोहासक्त होने लगीं। (संधि-३)। __ सुदर्शन का एक घनिष्ठ मित्र कपिल था। उसके साथ नगर में भ्रमण करते हुए सुदर्शन ने मनोरमा नामक युवती को देखा और वह उस पर कामासक्त हो गया। मनोरमा भी उस पर मोहित हो गयी। इस प्रसंग में यहाँ कामशास्त्र प्रणीत देश-देश की नारियों की प्रकृति आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है। (सन्धि -४)। सुदर्शन और मनोरमा की कामपीड़ा से उनके माता-पिता को चिन्ता हुयी। दोनों पिताओं ने मिलकर अपने पुत्र-पुत्री का परस्पर विवाह करने का निश्चय किया। विवाह की लग्न शोधी गयी और विवाहोत्सव मनाया गया। विवाह के समय की ज्योनार का भी अच्छा वर्णन किया गया। तदुपरान्त सूर्यास्त वर्णन, रात्रि वर्णन, वर-वधू की काम-क्रीड़ा एवं प्रभात वर्णन के साथ सन्धि समाप्त होती है । (सन्धि -५)। सुदर्शन के पिता सेठ ऋषभदास ने मुनि दर्शन किया, जिनसे उन्होंने मद्य, मांस और मधु के दोषों तथा अहिंसादि अणुव्रतों व गुणव्रतों, पात्र-दान, रात्रि भोजन के दोष आदि का उपदेश पाया। अन्त में मुनि ने मधुबिन्दु का दृष्टान्त देकर समझाया। यह समस्त धर्मोपदेश सुनकर सेठ ऋषभदास को वैराग्य उत्पन्न हो गया, और उन्होंने अपने पुत्र को गृहस्थ मार्ग की शिक्षा देकर व उसे कुटुम्ब का सब भार सौंपकर मुनि दीक्षा धारण की और यथासमय स्वर्ग गति प्राप्त की। (सन्धि-६)। सेठ सुदर्शन सुख से रहने लगे। किंतु उन पर उनके मित्र की पत्नी कपिला मोहासक्त हो गयी। उसने छल से सुदर्शन को अपने यहां बुलाया और उनसे काम-याचना की। किन्तु धार्मिक सेठ ने स्वयं नपुंसक होने का बहाना करके अपने प्राण छुड़ाये। वसंत ऋतु का आगमन हुआ, जिसका उत्सव मनाने राजा और प्रजा ने उपवन यात्रा की। इस यात्रा में रानी अभया ने सुदर्शन की पत्नी मनोरमा को देखा और उसकी प्रशंसा की, विशेष रूप से इस कारण कि वह पुत्रवती थी। जबकि रानी स्वयं पुत्रहीन थी। इस बात पर कपिला ने आपत्ति की कि जब उसका पति षंढ है तो उसे पुत्र प्राप्ति कहां से संभव है ? कपिला के मर्म की बात जानकर रानी ने उसका उपहास किया और स्वयं प्रतिज्ञा की कि वह सुदर्शन सेठ को अपने वशीभूत करके रहेगी। उद्यान क्रीड़ा की रंगरेलियों के पश्चात् राजा और प्रजा सब नगर को लौट आये। (संधि-७)। ___अभया रानी तभी से विरह वेदना में रहने लगी। उसकी दयनीय अवस्था देखकर उसकी पंडिता नामक सखी ने उसके हृदय की बात जानने का प्रयत्न किया और जानकर रानी को बहुत समझाया एवं शील की प्रशंसा की, किंतु रानी का हठ न छूटा और अंततः विवश होकर पंडिता को अभया की कामवासना तृप्त कराने के लिए वचनबद्ध होना पड़ा। सीधे उपाय से दृढव्रती सुदर्शन को फुसलाना असंभव

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