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६८ ] जन सुबोध पाठमाला - भाग १
पूर्ण शुद्धि करके पूर्व की प्रतिज्ञानुसार 'रणमो अरिहंतारण' कह कर कायोत्सर्ग पारे । फिर 'गमो अरिहन्तारण से साहूण' तक एक प्रकट नमस्कार मन्त्र पढ। फिर ध्यान पारने का पाठ पढे । फिर कीर्तन के लिए चतुर्विंशतिस्तव-रूप ५. लोगस्स का पाठ पढ़े। फिर वन्दन करके गुरुदेव से या बड़े श्रावक से सामायिक का प्रत्याख्यान करे या उनकी आज्ञा होने पर अथवा उनके अभाव में भगवान् की साक्षी से स्वय ६. 'करेमि भते' के पाठ से सामायिक का प्रत्याख्यान करे। पाठ मे 'जाव नियम' शब्द से आगे जितनी सामायिके लेनी हों, उतने मुहूर्त उपरान्त का कथन करे। फिर ७. दो नमोत्थुरणं पढे। सिद्ध भगवान् को दिये जाने वाले पहले नमोत्युग में 'ठाणं सपत्ताण' तथा अरिहन्त भगवान् को दिये जाने वाले दूसरे नमोत्थुण मे 'ठाण सपाविड कामाण' कहे। यों
यह सामायिक लेने की विधि पूरी हुई। प्र० : सामायिक पारने की विधि क्या है ? उ० : सामायिक पारने को भी प्राय यही विधि है। जो
अन्तर है, वह इस प्रकार है : सामायिक में अट्ठारह सावध योग (पाप) का प्रत्याख्यान किया जाता है। इसलिए सामायिक करने की तथा उसके लिए चउवीसत्थव की गुरुदेव आदि से आज्ञा ली जाती है। परन्तु सामायिक पारने पर सावध योग (पाप) खुले हो जाते है। उन्हें खोलने की गुरुदेव आदि आज्ञा नहीं देते। इसलिए सामायिक पारने की प्राज्ञा के लिए वन्दना आदि न करे।