Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 01
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 305
________________ काव्य-विभाग-जैन धर्म के १४ गुण [ २७६ श्राविका ' जो स्त्री जाति होकर भी, विलक्षण प्रश्न करती थी। ज्ञान-चर्चा की रसिका वे, 'जयन्ती' याद आती है ।।५॥ कहे 'केवल' अरे 'पारस' बना अपना जीवन इन-सा। यही है सार सुनने का, कि हम भी याद बनते हैं ।।६।। ८. जैन धर्म के १४ गुण जय वीर धर्म की बोलो, जय जैन धर्म की बोलो टेर।। १. जैन धर्म ही सत्य पूर्व पर, २. धर्म न इससे कोई बढकर । __ श्रद्धा सुदृढ कर लो, जय जैन धर्म की बोलो ।।१।। ३ अरिहन्तो ने इसे बताया, अद्वितीय सव मे कहलाया। पूरी प्रीति जमा लो, जय जैन धर्म की बोलो । २॥ ४ जैन धर्म मे कमी न कुछ है, ५ स्याद्वाद सिद्धात सहित है। ___ गहरी रुचि बना लो, जय जैन धर्म की बोलो ।।३।। ६ है शत-प्रतिशत शुद्धि वाला, ७ तीनो शल्य मिटाने वाला। शीघ्र फरसना कर लो, जय जैन धर्म की बोलो ॥४|| ८ अविचल सिद्धि देने वाला, ६ आठो कर्म खपाने वाला। मन वच तन से पालो, जय जैन धर्म की बोलो ।।५।। १० यही मोक्ष तक पहुँचायेगा, ११ सच्ची गान्ति दिखलायेगा। . ' इसके पीछे हो लो, जय जैन धर्म को बोलो ।।६।। १२ इसमे विकृति कभी न पाती, १३ इसकी सधि टूट न पाती। 'पारस' १४ सब दु.ख टालो, जय जैन धम की बोलो ||७|| -~ोपपातिक, देशनाधिकार के भावो पर ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 303 304 305 306 307 308 309 310 311