Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 01
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

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Page 308
________________ २८२ ] जन सुबोध पाठमाला-भाग १ भा० मीठी मीठी अच्छी अच्छी, धर्म कथा सुन पाएँगे। जीवन अपना उठेगा ऊँचा, हम महान बन जाएंगे। झटपट झटपट आयो, जल्दी जल्दी आयो । स्थानकजी ।४। ब० मुनि बनेगे एवन्ता से, महासति चन्दनबाला । या फिर आनन्द कामदेव से, चेल्लना जयन्तीवाला ॥ सतुष्ट हो पायो, हर्षित होकर पायो । स्थानकजी ॥५॥ दोनो.-भाई बहन वे भी जाते है, हम भी सग हो जाएँ। __ सब मिलकर हम जैन धर्म की, ध्वजा सदा फहराएं। खेल छोडकर आओ, कूद छोडकर आयो । स्थानकजी ।। . दोनो केवल पत्थर नही रहेगे, 'पारस' हम बन जायेंगे। बालक भी मिल पाली का चौमासा सफल बनायेंगे ।। (ज्ञान क्रिया का आराधन कर सच्चे जैन कहायेगे।।) आओ सहेली आओ, आओ साथी अायो । स्थानकजी ७। सामायिक कीजिय [ तर्ज : दिल लूटने वाले जादूगर ..... ] यदि आत्मोन्नति अभिलाषा हो, तो सामायिक आराधन हो । टेर।। यदि देह बढे परिवार बढे, धन धान्य बढे सुख भोग वढे । इनसे ससारोन्नति होती, पर आत्मा का उत्थान न हो ||१| ससार स्वर्ग-सा देख चुके, साक्षात् स्वर्ग भी भोग चुके । अब अमर मोक्ष सुख पाना हो तो, धर्म प्रति आकर्षण हो ।।२।। सव लोक मे धर्म ही ऐसा है, जो आत्मोन्नति कर सकता है। यदि साधु धर्म सामर्थ्य नही, तो. गृहस्थ धर्म अनुपालन हो ॥३॥ श्रावक के कुल वारह व्रत हैं, उनमे सामायिक नववाँ है। यदि पूरे वारह बन न सके, तो नववाँ व्रत ही धारण हो ॥४॥

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