Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 01
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

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Page 297
________________ कथा-विभाग-६ छोटी बहू रोहिणी [२७१ शिक्षा बालको | आप कैसे बनना चाहते हो ? उज्झिता के समान ? नही, नही। यह जो ज्ञान पा रहे हो, वह कही फेक न देना, भूल न जाना या आधा स्मरण रक्खा, आधा विसर गए- ऐसा भी मत करना। अथवा जो व्रत धारण करो, उन्हे छोड न देना या उनमे दोष भो मत लगाना । क्योकि जो ऐसा करता है, वह निन्दनीय बनता है। इसलिए चाहे ज्ञान हो या चाहे व्रत, उन्हे स्थिर रखना।। बालको। ज्ञान या व्रत को लज्जा से या भय से भोगवती के समान टिकाना भी कुछ प्रशसनीय नही है या इच्छा के साथ भी टिकाया, पर केवल सासारिक (लौकिक) सुख के लिए टिकाया, तो भी प्रशसनीय नही है। धार्मिक ज्ञान या धार्मिक व्रतो का उद्देश्य लौकिक नहीं है, किन्तु उनका उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है। तो क्या आप तीसरी बह रक्षिता के समान बनोगे ? हॉ, उसके समान बनना अच्छा है। ऐसा पुरुष धन्यवाद व प्रशसा का पात्र बनता है। जो सीखा, वह स्मरण रक्खा, जो व्रत लिया, वह निभाया। पर आप उद्यम करो और चौथी बहू रोहिणी के समान बनो। जब चौथो बहू ने पाँच गालि गाडियो से लौटाये, तब तीसरी बह को कितना पश्चात्ताप हा होगा ? 'अरे । मैं भी यदि इसके समान शालि की वृद्धि करती, तो मैं सचालिका बनती !' यदि आप मे योग्यता है, तो आप तीसरी बहू के समान रहकर खेद का अवसर मत आने देना। जो ज्ञान सीखा, वह दूसरो को सिखाना और जो व्रत स्वय ने धारण किये हैं, वे दूसरो को

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