Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 01
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

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Page 274
________________ २४८ ] जैन सुवोध पाठमाला-भाग १ साधु-साध्वियों को शिक्षा __ कामदेव के द्वारा हाँ भरने पर भगवान् ने वहत-से साधुसाध्वियो को सबोधन करके कहा-आर्यो । गृहस्थ श्रमणोपासक, गृहस्थवास मे रहता हुया भी जव देवादि के उपसर्गो को भली-भाँति सहन कर सकता है, तो जिन्होने घरवार त्याग दिया, जो सदा अरिहतो की वाणी सुनते रहते है, उनके लिए देवादि उपसर्ग सहना शक्य है, अगक्य नही है। अत. पापको भी कामदेव का अादर्श दृष्टान्त ध्यान में रखते हुए सभी उपसर्गों को दृढतापूर्वक सहना चाहिए। सभी साधु-साध्वियो ने अपने से छोटे गृहस्थ के दृष्टान्त से दी गई, भगवान् की उस शिक्षा को बहुत ही विनय के साथ स्वीकार की। देवलोकगमन तथा मोक्ष उसके पश्चात् कामदेव श्रावक ने भगवान से कुछ प्रश्न किये और उत्तर प्राप्तकर अपनी शकाएँ दूर की तथा जिज्ञासाएँ पूर्ण की। पश्चात् वे वन्दन-नमस्कार करके अपने घर को लौट गये। कामदेव श्रावक ने उसके पश्चात् और भी अधिक धर्मध्यान किया । (श्रावक की ११ प्रतिज्ञाएँ पाली ।) । उन्होने सव २० वर्ष तक श्रावकत्व का पालन किया। अन्त मे उन्होने अपने जीवन में जो कोई दोष लगा, उसका अालोचन प्रतिक्रमण करके संथारा ग्रहण किया। एक मास का अनशन होने पर वे मृत्यु के अवसर पर काल करके पहले

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