Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 01
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

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Page 294
________________ २६८ ] जैन सुवोध पाठमाला- -भाग १ देखती रहती और पुन सभाल कर रख देती । इसने भी अपने नाम के अर्थ के अनुसार काम किया । रोहिणी द्वारा वृद्धि धन्य ने अन्त मे ४. सबसे छोटी बहू को भी बुलाकर पाँच गालि दिये । उसने भी एकात मे जाकर तीसरी बहू के समान सोचा । परन्तु उसने सरक्षरण - सगोपन के साथ सवर्द्धन (वढाना ) भी सोचा । यह सोचकर उसने अपने पीहर वालो को बुलाकर कहा - 'इन पाँचो गालि के बीजो का सरक्षरण संगोपन करना और प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु मे इन्हे वो कर इनकी वृद्धि करते रहना ।' इस प्रकार चौथी ने भी अपने नाम के अर्थ के अनुसार किया । पहली पीहरवालो ने रोहिरणी की बात स्वीकार कर ली । प्रथम वर्ष की वर्षा ऋतु मे उन्होने उन पाँचो शालियो के लिए एक स्वतन्त्र छोटा-सा क्यारा बनाकर उन्हे वो दिये। बार मे ही वे पाँच शालि सैकडो शालि वन गये । पक जाने पर उन्हें काटकर हाथ से मलकर फिर साफ किया । फिर उन्हे घडे मे डालकर और उन पर छाप आदि लगाकर उन्हे सुरक्षित कर दिया गया । दूसरी वर्षा मे उन्हे वोने पर वे इतने बन गये कि उन्हे पैरो से मल कर साफ करना पड़ा | तीसरी वर्षा मे वे कई घडे जितने और चौथी वर्षा मे वे कई सैकडो घडे जितने बन गये । पाँचवाँ वर्ष धन्ना सार्थवाह को पाँचवे वर्ष की एक पिछली रात्रि मे विचार आया- 'अब देखना चाहिए कि, उन शालियो का किस

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