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બીજા ભાગના અભિપ્રાય.
'सुभाषित-पद्य - रत्नाकर का दूसरा भाग देखकर अत्यन्त हर्ष हुआ । इसमें सन्देह नहीं कि दूसरा भाग भी पहिले भाग की तरह पूरे परिश्रम और विशाल अध्ययन का परिणाम है । एक दृष्टि से दूसरे भाग का महत्त्व अधिक है, क्योंकि इस में जैनधर्म से सम्बन्ध रखनेवाले सभी महत्त्वपूर्ण विषय आ गये हैं । मेरी तीव्र अभिलाषा है कि ऐसे उपयोगी ग्रन्थ का हिन्दी संस्करण भी कोई संस्था प्रकाशित करें, जिससे अन्य प्रान्तों के लोग भी इससे पूरा लाभ ले सकें । इस पुस्तक की छपाई, कागज और बाइंडिंग सभी सुंदर हैं । संग्राहक और प्रनुवादक स्वनामधन्य मुनिराज श्रीविशालविजयजी महाराज तथा इस ग्रन्थ की प्रकाशन संस्थाने जैन एवं जैनेतर समाज के लिये ऐसा साहित्य का प्रकाशन कर बड़ा उपकार किया है । और उनको हमें अवश्य धन्यवाद देना चाहीए ।
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सेडटेरी " श्री जैन ज्ञान भहिर " विलपुर, (गुजरात)
“સુભાષિત ગ્રન્થેાનાં ભાષાન્તરેામાં આપના પ્રયાસ સ્તુત્ય છે. આવી જ રીતે ખીજા ગ્રંથા આપના તરફથી પ્રકટ થશે એમ ઇચ્છીએ છીએ.
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श्रीयुत उनैयालाल
शिंकुर हवे, पाटल (गुजरात ).
...આપશ્રીએ અનેક ધ ગ્રંથામાંથી વીણી વીણીને આવે મેાટી સગ્રહ પ્રગટ કરાવીને લોક-કલ્યાણના સાધનનું સેાપાન બનાવ્યું છે, તે ધણું જ સ્તુત્ય કર્યુ” છે. આપશ્રીના ખીજા ભાગા पशु आरसा पूर्खाहरने पाभो, भेवी सहा अभिलाषा छे... "