Book Title: Sramana 2005 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 10
________________ जीवदया : धार्मिक एवं वैज्ञानिक आयाम : m १. जीवदया की सैद्धान्तिक बुनियाद आधुनिक विज्ञान एवं तंत्रज्ञान की प्रगति के साथ-साथ हिंसा का प्रमाण भी बढ़ रहा है। पालतू जानवरों के बड़े फार्म तथा वैज्ञानिक अनुसंधान की बड़ी प्रयोगशालाओं में जानवरों की हिंसा सतत् होती है। धनी नगरवासियों के शौक के लिए बने प्राणिसंग्रहालयों (चिड़ियाघरों) में भी कई प्रकार की हिंसा होती है। इसमें मानव का स्वार्थ निहित होने के कारण इस प्रकार की हिंसा को पूरी तरह रोकना भी सम्भव नहीं है। अतः पश्चिमी देशों में अब जीवदया के विषय में नये सिरे से चर्चा प्रारम्भ हो गयी है। इस सन्दर्भ में तीन प्रमुख विचारधाराएं हैं जिनका संक्षिप्त वर्णन नीचे दिया गया है। १. सर्वजीवसमानतावाद इस विचारधारा के अनुसार सभी जीवों पर समान रूप से दया का भाव रखना चाहिये। सभी जीवों का एक प्रमुख लक्षण हैजिजीविषा । मृत्यु का डर सबको समान रूप से सताता है। अतः किसी जीव को किसी प्रकार की पीड़ा देना अनुचित है। किसी आचार नियम का औचित्य परखने का एक आसान तरीका है। इस विधि के अनुसार हमें यह सोचना चाहिये कि यदि हमें कोई पीड़ा दे तो हमारी प्रतिक्रिया क्या होती ? स्पष्ट है कि सभी जीव समान रूप से दया के अधिकारी हैं। Jain Education International वस्तुत: यह विचार प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है। जैन मुनि (श्रमण ) इसी आचार नियम का यथा सम्भव पालन करते हैं। यद्यपि एक आदर्श सदाचार नियम के रूप में यह विवादातीत है तथापि व्यवहार्यता की दृष्टि से यह सदोष है क्योंकि सभी लोगों के लिए इसका आचरण सम्भव नहीं । संसार के सभी बंधन तोड़कर कोई मुमुक्षु दृढ़ निर्धारण के साथ इसके पालन का प्रयत्न कर सकता है फिर भी चलने-बैठने में, यहां तक कि श्वांस लेने में भी हिंसा होती है। दुष्ट हेतु से रहित होकर इस कठिन व्रत का पालन करने से व्रती को अपराध भावना नहीं आती। फिर भी यदृच्छया होने वाली हिंसा होती ही है । " ७ २. अनुबद्धतावाद - इस वाद के अनुसार हमें जीवों पर दया करनी चाहिये क्योंकि हम उनसे फायदा लेते हैं। इस प्रकार जीवों के साथ हमारा एक अलिखित अनुबन्ध है। इस वाद की परिधि में सभी पालतू जानवर आते हैं। अन्य जीवों के विषय में हमारा ऐसा कोई दायित्व नहीं है। गाय, भैंस, घोड़ा, कुत्ता आदि जानवर पूर्ण रूप से हमारे अधीन हैं। इसलिए उनका भरण-पोषण, रक्षा, बीमार होने पर औषधोपचार आदि हमारी ही जिम्मेदारी है। जंगली जानवारों तथा मछली, झींगा आदि जलचरों को आहार के लिए मारना इस वाद के अनुसार पाप नहीं है। हमें कष्ट पहुंचाने वाले जन्तु जैसे- मच्छर, विषैले सांप आदि मारना भी इस वाद के अनुसार पाप नहीं है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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