Book Title: Sramana 1999 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ श्रमण आचाराङ्ग के कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्र : एक विश्लेषण डॉ० सुरेन्द्र वर्मा* देखो और समझो ('पास') महावीर का समस्त दर्शन अमूर्त चिन्तन का परिणाम न होकर सहज प्रत्यक्षीकरण पर आधारित है। यह आवश्यक नहीं है कि जो कुछ भी महावीर कहते हैं उसे आँख बन्द कर सही मान ही लिया जाए। वे बार-बार हमें संसार की गतिविधियों को स्वयं 'देखने के लिए कहते हैं। ('देखने के लिए प्राकृत भाषा में 'पास' शब्द का प्रयोग हुआ है जो वस्तुत: ‘पश्य' (सं०) धातु से आया है।) और इस प्रकार स्वतन्त्र रूप से उन निष्कर्षों पर पहुँचने के लिए प्रेरित करते हैं जो स्वयं महावीर ने अपने अनुभव और प्रत्यक्ष से फलित किए हैं। महावीर का यह आग्रह कि हम संसार की गतिविधियों को स्वयं ही देखें, एक ओर जहाँ स्वतन्त्र चिन्तन पर बल देता है, वहीं दूसरी ओर दार्शनिक विचार को केवल अमूर्त सोच और किताबी ज्ञान से मुक्त करता है। महावीर हमें आमन्त्रित करते हैं कि हम देखें कि इस संसार में सभी जीव एक दूसरे को दुःख पहुँचाते हैं, इससे समस्त प्राणी जगत् एक आतंकित स्थिति में जीने के लिए अभिशप्त हैं, वे कहते हैं - पाणा पाणे किलेसति। पास लोए महन्भयं। (पृ० २३०/१३-१४)* - *. पूर्व उपनिदेशक -- पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी। *. इस आलेख कि सभी उद्धरण, मुनि नथमल द्वारा सम्पादित और जैन विश्वभारती लाडनूं, द्वारा प्रकाशित आयारो से लिए गए हैं। पृष्ठ संख्या के बाद गाथा क्रमांक डाला गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 210