Book Title: Sona aur Sugandh Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 14
________________ नारी नहीं, नारायणी | ५ भावदेव मुनि---तुम्हें पता नहीं है; नागला मेरी धर्मपत्नी है। श्राविका-आश्चर्य है ! जहाँ तक मुझे पता है कि जैनमुनि के पत्नी नहीं होती और आप कह रहे हैं कि वह मेरी पत्नी है, यह क्या बात है ? भावदेव-श्राविका तुम्हारा कहना सत्य है, किन्तु मैं विवाह करने के तुरन्त पश्चात ही भाई के उपदेश से साधु बन गया था। पर अब......" श्राविका-'अब' का तात्पर्य मैं नहीं समझी ? क्या आप पुनः उसके साथ सांसारिक जीवन व्यतीत करना चाहते हैं ? यदि चाहते हैं तो मैं स्पष्ट रूप से आपको सूचित करना चाहती हूँ कि वह आपको स्वप्न में भी नहीं चाहेगी। उसके लिए आप अपनी साधना खण्डित न करें। ___ भावदेव-श्राविका ! तुझे क्या पता उसके मन की बात ? जितनी मुझे उससे मिलने की आतुरता है उससे कहीं अधिक उसकी आतुरता होगी और वह मेरे प्रस्ताव को कभी भी नहीं ठुकराएगी। श्राविका ने कहा-महाराज ! निरर्थक बातों में आपने मेरा समय बर्बाद कर दिया। मुझे क्या लेना-देना इन बातों से । कुछ धार्मिक चर्चा होती तो आपका और मेरा दोनों का ही कल्याण होता। आप जरा आराम कीजिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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