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धर्मोऽयं रति संज्ञकः
आपद्यपद्यपुत्रापि दायधर्मान्निबोधत । पुत्रोत्पत्ति और दाय विभाग को भी धर्म बताया है और कहा है कि इसमें किसी प्रकार हस्तक्षेप करना धर्ममर्यादा पर हस्तक्षेप माना जायगा। राजधर्म में शासक की योग्यता के सम्बन्ध में
महोत्साह स्थूललक्ष्यः कृतज्ञो वृद्धसेवकः।। विनीतः सत्त्वसम्पन्नः कुलीनः सत्यवाक्शुचिः।
अदीर्घसूत्रः स्मृतिमान् अक्षुभोऽपरुषस्तथा ॥ शासक के स्मृतिमान् स्मृतिशास्त्रों का ज्ञाता, कृतज्ञ, कुलीन, सत्त्वप्रधान आदि लक्षण बताये हैं। व्यवहार में ऋणादान अर्थात् रुपया की वृद्धि के दर से लेकर सब प्रकार के भूमि कर आदि की सुचारु व्यवस्था की है। __मर्यादात्यागी (धर्मशास्त्र की विधि नियम का उल्लंघन करने वाले) को प्रायश्चिती बताया है। पाप पांच श्रेणियों में बताये हैंमहापाप, अतिपाप, उपपातक, पातक, जातिभ्रंश आदि । मद्यपान महापाप बताया है, कृतघ्न पुरुष प्रायश्चित करने पर भी शुद्ध नहीं होता है इत्यादि । अत्रिस्मति में शुद्धता को विशेष स्थान दिया है। विष्णु स्मृति में भगवदुपासना-भक्ति का सङ्केत सर्व प्रकार की बाधा निवृत्ति के लिये बताया है। इसके अतिरिक्त मानव संस्कृति को विष्णुस्मति ने एक बहुत सुचारु और आकर्षक प्रणाली में वर्णन किया है। इस शिक्षावली के अध्ययन और विचार से मानवता की संस्कृति का विकास हो जाता है। इन सूत्रों में धार्मिक आचरण और पारस्परिक सम्बन्ध व्रत नियम उपासना उत्सवादिकों का सविस्तर वर्णन है । शातातप ने प्रायश्चित करने का विशेष स्थान कहा है
प्रायश्चित्तविहीनानां महापातकिनां नृणाम् ।
नरकान्ते भवेज्जन्म चिह्नाङ्कितशरीरिणाम् ॥ पाप के प्रायश्चित न करने से नरक भोगने के अनन्तर देह में चिह्न शारीरिक विकृति और असाध्य रोग आदि अंकुर हो जाते
- गौतम न प्रायश्चित प्रकरण में पापों का निर्देश कर पापकर्म से छुटकारे की राह बताई। दाय का निर्णय स्त्री का धर्म विशेषतया प्रकट किया।