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[ ५३ ] पूधानविषय करे और ग्राम-ग्राम में भीख मांगे और घास पर सोवे तथा अपने पाप को कहता जावे। रजस्वला आदि गमन स्त्री पाप आदि नष्ट हो जाते हैं। फल के वृक्षादि, गुल्मादि
काटने के पाप भी इस व्रत से नष्ट हो जाते हैं। ५१ सुरापः सर्वकर्मस्वनहः मद्यमांसादि निषेधं तच्चसर्व प्रायश्चित्तवर्णनम्पणनम्
४८२ सुरापान करनेवाला किसी कार्य को या मातृ-पितृ श्राद्ध कर वह एक वर्ष तक कणों को खावे एवं चान्द्रायण व्रत करे । प्याज लहसुन, वानर, खर उष्ट्र, गोमांस के भक्षण करने पर भी वही व्रत है। द्विजातियों को इस व्रत के पश्चात् फिर संस्कार करें। शुष्क मांस के खाने पर भी उपरोक्त व्रत करे। अभक्ष्य भक्षण करने से जो पाप होते हैं वे सभी इसी व्रत से
नष्ट हो जाते हैं। ५२ स्वर्णस्तेयिनां तथान्यान्य द्रव्य हरणां प्रायश्चित्त वर्णनम्
४८७ सुवर्ण चोरी तथा अन्यान्य द्रव्य चोरी के प्रायश्चित्त का वर्णन है। ५३ अगम्यागमने दोषनिरूपणं प्रायश्चित्त वर्णनम्-४८८
अगम्या-गम्य के विषय में प्रायश्चित्त बतलाया है।