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अध्याय
पृष्ठाङ्क
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प्रधानविषय ४७ चान्द्रायण व्रतवर्णनम् ग्रासार्थान्न निर्णय वर्णनञ्च ४७७
चान्द्रायणके विधान–इसमें यति चान्द्रायण और सामान्य
चान्द्रायणादि का वर्णन आया है। ४८ अन्नदोषार्थ यवेन प्रायश्चित्तम्- ४७८
अपने लिये यव भिंगो कर उसकी तीन अंजुली पीवे उससे वेश्या का अन्न, शूद्र के अन्न का दोष हट जाता है । ४६ मार्गशीर्षशुक्लैकादश्युपाख्यान वर्णनं, सर्वपाप
निवृत्यर्थ वासुदेवार्चन वर्णनञ्च--- ४७९ ये पाप के दूर करने के सम्बन्ध में कहा गया है। मार्गशीर्ष शुक्ला ११ में उपवास कर १२ में भगवान् वासुदेव का पूजन पुष्प, धूप आदि से करे। तथा ब्राह्मण भोजन, एक साल तक व्रत करने से पाप नष्ट हो जाते हैं। एकादशी व्रत करने से बहुत पाप नष्ट हो जाते हैं। श्रवण नक्षत्र युक्त एकादशी वा पूर्णिमा को एक वर्ष तक व्रत करने से पाप नष्ट
हो जाते हैं। ५० ब्रह्म, गोवधादि प्रायश्चित्तार्थ-वने पर्णकुटी विधान वर्णनम्
४८० व्रत का वर्णन-वन में झोपड़ी बनावे और तीन वार स्नान