Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

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Page 4
________________ अग्रवचन परमोपकारक श्री जिनेश्वरोए ज्ञान अने क्रिया वडे मोक्षनी प्राप्ति थाय छे एम प्रतिपादन करेलु छे, तेमां पण प्रथम ज्ञान अने पछी क्रिया माटे मुक्तिना इच्छकोए अवश्य ज्ञान मेळवQ जोहए. ते ज्ञान-१ द्रव्यानुयोग, २ चरणकरणानुयोग, ३ गणितानुयोग अने ४ धर्मकथानुयोग ए चार विभागथी सिद्धांतमां कथन करायेलुं छे. ते मूल सिद्धांत मागधी (प्राकृत ) भाषामा छे अने पूर्वाचार्योए वृत्ति वगेरे अनेक ग्रंथो पण संस्कृत अने प्राकृत भाषामां रचेलां छे. तेनुं ज्ञान सामान्य जीवोने समजबुं मुश्केल थाय माटे तेनु रहस्य (सार) आ पुस्तकमां संग्रह करवामां आवेल छे. तेथी आनुं नाम " सिद्धांतरहस्य" राखवामां आवेलु छे. आ पुस्तकमां जीव विचार, नवतत्त्व वगेरे बत्रीश विषयो छे, एर्नु अपर नाम “थोकडा संग्रह" पण राखेलं छे. आ ग्रंथमां मुख्यत्वे द्रव्यानुयोग अने गौणताए चरणकरणादि अनुयोगोने पण स्थान आपवामां आवेलुं छे. यद्यपि थोकडा (प्रकरण संग्रहादि )ना पुस्तको प्रथम छपाइ गया छे तथापि तेमां प्रायः गतानुगतिकता माथे रुदिनु प्राबल्य पण विशेषज्ञोने जणाशे. आ ग्रंथमां घणोज सुधारो-वधारो करवामां आव्यो छे. आगति-गति अने गुणस्थान जेवा विषयोमां तो घणीज नवीनता जणाशे. परंतु सूक्ष्मदृष्टिथी अवलोकन करनारने सत्य वस्तु ख्यालमा आवी जशे, तेमज कर्मप्रकृतिमां पण खास उत्तर प्रकृतिनी स्थिति वगेरे अने लेश्या तथा समुद्रात अने ज्ञानस्वरूपचं वर्णन पण शास्त्रनु मंथन करी लखवामां आव्युं छे. अने स्थाने स्थाने आवश्यक टिप्पणो पण लखेल छे जेथी वस्तुनु स्वरूप समजबुं सुगम पडे. आ पुस्तक लखती वखते-१ श्रीठाणांगसूत्र २ श्रीभगवतिमूत्र

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