Book Title: Siddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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सिरख गुरापाइ निशिग्रहणादिनिरपिशीस्माया ! यशस्वी तित समाचर्थेन भन्वाडुत्वं न यशस्वा ४४४ नितिपूर्ववत्रे नित्यग्रहणेन बाधितम्य्यन्यतरस्यांग्रहशां मंडूक गत् हानु वा नसो मन्वर्थ इत्यत्र प स्वानिनिभाय्या रित्तिभाका किन्ने नत्वादितिघ्रा चालचोक रितिकुक्तमित्युक्तेोतलितार्थपर नया बौध्यायन्यथा तदयवादतया जश्च निघत्वप्रसंगात्। झामय स्पैति । यद्यपि बहुले छंदसी तिस श्रा मयस्येत्यादिवार्तिकानियांठ नानि तथा पिसर्वत्रामय स्यैति सर्वग्रहरा स्यवन त्या लोक वेदसाधा रावतस्त्र वार्त्तिके व पिसर्वत्र ग्रह शामनुवर्तनीय हृदयातावालश्च स्पे ॥ श्रन्यतरस्या ग्रहणामिनिठनोः समावेशापाने नात्रमतया सह चत्वारः अन्यायाबोध्याशी तो चाल नाय तुप्रा चाट मायालु निश्चिय तिन तु माष्पविरोधाइये पुरोडाशइति नत्र यावरु चसभिन्यत्र वेदभाष्ये स्फापितंची सगा दिसचेच नथोक्तत्वादिति भाव हिमाञ्चलरितीए का रादिः राम प्रत्यवादिति सिध्मादिषुबलवा तलशब्दाविनोदानामन्वर्थेषुत्पादितौ इहत्त्व थतिरे मध्योदा ४७४
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