Book Title: Siddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 484
________________ उ निविशेषवाचीतथा सामानाधिकरण्याभावाघनोनुत्पत्तेः किंतुयोगिकः क्रियानिमितोदे वश इस स्मा स्वार्थताश्रुतएव देव देवत्यमिनिसि भयो शह युगयत्पर्याय इयूप | योगाने स्यादिनिभावः॥ यमिति मूल्यरज्ञा विधावर्धन्य मानी अमित प्रत्पपान मंत दानं व्युत्यादिनंशेषिके घुनिस्मादनादानी एवं साधार समान धारामिति कर्मधारया यहा बहुबीहिरस्टोदरादित्वात्समान स्पसा देश ॥ फलानर माह त्रियामिति। अभावेाशवीचा अनित्यत्वं चैस्वसमानाधिकर साध्वसप्रतियोगित्वं एवरकर सफला लाता दिनार क्तेलौहित्य स्य्यावदाश्र वितमानित्यत्वाता लिंगबाधनं बतिप्रतिपदविधेर्बलबत्ता परत्वान्प्रायदिका छिनाइत्याश्रयणाञ्च वदनु दादिति डीन कारोबाधित्वाक नस्यारत तो लोहि निकै निनस्यादिननित्ये लिंगार्थ मूल्य बाधेप्राप्रे विकल्पाथैवचनवनम खाना सिद्धाना स्वार्थी दिन मेरा या ना देख पिततः कनिचरूप द्दप सिदेवचन व्यर्थ। तार Dharmartha Trust J&K. Digitized by eGangotri

Loading...

Page Navigation
1 ... 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507