Book Title: Siddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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ते तेषांसा व का शत्यात्। सुग्रहरणान्ति पु-श्चतीहसू चेन संवधते । उत्तरत्र तुम राहू क नु त्या संवध्य तर वेति सिद्धान्तानानि स्वरार्धम् । १ सिरस वाच्यंांतिर्डे ते नववत्पत्र का रा का रउदान चिनः सप्रकृतेर्बककार्थमिति वार्त्तिकाशनत्र ४५५ बहुयटु स्रइनि । लौकिके वा को अर्थवदितिप्रातियद्विकत्वसुयोधात्वितिजसेालुक्यु कार 455 स्पादानत्वेनैपुनर्जस्युक्त स्वरसिद्धिरित्पर्यवन्तु मिहितात स्माश इस्पे ययोजनप्रत्ययो त्यत्ते प्रारूप हतैर्ये लिंगवचने पिप्रत्ययेनेवस्याना नितिन बजे गुड़ो दाज्ञा । बडतेल यस ना बययोयना लघु बहुत शानरइत्यादिसि तनतुकास गोष्ट रचः पित्वन स्वार्थिकाः प्रत्ययाः प्रकृतितालिंगच नान्यनुवर्ततइतिज्ञापन नै वसि इमितिचे न्सन्यो एन देवतग्रह शलिंग स्वार्थिकाः प्रतिता लिंगवचनान्यतिवर्तते यी न्यथ॥ ननगुड कल्यादा ता तैलकल्पाप्रसन्ना पयस्क ल्याय वा गुरित्येतत्सिदाराचः स्त्रियामजित्पत्र स्त्रियांग्रहणमपिलि गवचनातितो ज्ञायकीन रखो किताब गुण्डे तिस्रीलिंगमुदाहतं नाध्यविरोधादयु राम निशायनेषदसमाप्यायुगपद्दिक्तायां परत्वात्कल्पबादयोभवनिमतस्तैरप्रमयेोपयु ४५५
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