Book Title: Siddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
रस्पतिवान नाधेयस्यशास्त्रस्यकुत्साप्रतीतेर्भवृतिवैपाकरणायाशइनिप्रयोगाकुत्सित इत्यत्र वेदनेोक्तानिनादपिप्रसंगानापूर गाडा पूरणार्थकत्वात्तीययन्पयःपूर शिवाच्यार ग्रहरा चौत्तरा थी मुखतीय, याची मादावनर्थकत्वान्नानिप्रसंग त्याकरः । वनार्थ वन्परिभाषायाञ्चानित्यत्वज्ञापनार्थ मिहाप्यावश्यकता तपान कर रो ऽतिप्रसंग वारणार्थचामा गइतिपुंस्त्वं विवज्ञिना ते नसमा नेपथको विवचितायां द्वितीया भक्तिरित्यूचा निसन्यादानस्यादिदानः। एवंप्राये का दशभ्यइन्फन्तरवस्त्रियां पंचमीत्येव भवति प्रभ्य येनुटा पिपंच माइत्येवस्या दिनिभावः । एकादा किनि । इहै कूश हो न संख्या वाची गृह किंतु अस हायवाची तेनैका किभिः खटके ति भित्पत्र बहुवचनेनानुपपन्नी भूत गोष्ट त्वनित्यत्रैव नोक्तविशेषविहितेन खाचरो बाधामाभूत गौरवस्वी त्यहरे पाठे सामथ्यी दिति न व्याव इयमपी दंग शदित्य नःप्राकृर्त में। गोष्ठा तखञ्चन्यवसत्र मस्तानेनशह
© Dharmartha Trust J&K Digitized by eGangotri

Page Navigation
1 ... 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507