Book Title: Siddhahemshabdanushasana Part 1
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: University Granth Nirman Board

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Page 779
________________ ૭૫૮ સિદ્ધહેમચંદ્ર શબ્દાનુશાસન इत्-ऋध-भ्रस्ज-दम्भ-श्रि-यु-ऊणु-भर-ज्ञपि-सनि-तनि-पति-वृ-ऋत. दरिद्रः सनः ॥ ४।४। ४७ ॥ भनी मत इव् छे सेवा दिव् पगेरे धातुमा भने ऋधू , भ्रस्ज् , दम्भू , श्रि, यु, ऊर्गु, भर् , शपू , सन् , तन् , पत् , वृ ( पू त वृग तथा वृङ्), सने हा ऋकारांत धातुमा तथा दरिद्रा धातु-मे मघा धातु पछी सन् प्रत्यय लाग्यो होय तो त सन्नी ५९सा इट् विदथे भे२।५ छे. मत इव्दिव् -- दिव+षति - दिदेव + इ+षति = दिदेविर्षात, दुयषति-ते २भवाने छे छे. ऋधूऋध्क्षति-अर्दिध्+इ+षति-अदिधिषति, इसति-ते १५ ४२वान छे छे. भ्रस्ज्भूजषति-बिभ+इ+षतिबिभर्जिषति, विभक्षैति-ते ५:१वान-भूपाने छे छे. दम्भूदम्भ षति-दिदम्भ+इ+षति-दिदम्भिषति, धिप्सति, धीप्सति-ते ६ કરવાને ઈરછે છે. श्रिश्रि+षति-शिश्रि+इ+ति-शिश्रे+इषति-शियिषति, शिश्रीषति- सेवा કરવાને ઈચ્છે છે. यु+षति-युयु+इ+षति-यियो+इषति-यियव्+इषति=यियविषति, युयूषतिમિશ્ર કરવાને ઈચ્છે છે. ऊणुप्र+ऊणु+षति-प्र+ऊर्जुनु+इ+षति-प्रोणुनव+इषति-प्रोणुनविषति, प्रोणुनूषति-ढावाने धछे छे. भृ+षति-बिभर+इ+षति = बिभरिषति, बुभूर्षति-मरवाने छे छे. ज्ञपिशपिझ्षति-जिज्ञपय्+इषति-जिशपयिषति, शीप्सति- सतोषा छे छे વગેરે અર્થ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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