Book Title: Shwetambar Sthanakvasi Jain Sabha Hirak Jayanti Granth
Author(s): Sagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 51
________________ डॉ. सुदर्शनलाल जैन छेदसूत्र -- इनमें साधु एवं साध्विनियों के प्रायश्चित्त विधि का वर्णन है। आगमों के प्राचीनतम अंश होने से महत्त्वपूर्ण है। ये संक्षिप्त शैली में लिखे गये हैं। बौद्धों के विनयपिटक से इनकी तुलना की जा सकती है। इनकी संख्या के विषय में मतभेद है। ये संख्या में अधिक से अधिक छः माने गये हैं और कम से कम चार। छेदसूत्र जैन आचार की कुंजी है तथा जैन संस्कृति की अद्वितीय निधि है। 1. दशाश्रुतस्कन्ध (आचारदशा) -- इसमें 10 अध्ययन है। मुख्यतया यह गद्य में है। इसके रचयिता आचार्य भद्रबाहु हैं। 2. बृहत्कल्प (कल्पसूत्र) -- इसमें 6 उद्देशक हैं जो गद्य में लिखे गये हैं। 3. व्यवहार -- इसमें 20 उद्देशक हैं जिसमें करीब 1500 सूत्र हैं। छेदसूत्रों में इसका सबसे अधिक महत्त्व है। 5. महानिशीथ -- इसमें 6 अध्ययन एवं दो चलायें है। भाषा और विषय की दृष्टि से यह प्राचीन नहीं लगता है। वस्तुतः महानिशीथ नष्ट हो गया है। उपलब्ध महानिशीथ (जो निशीथ से छोटा है) हरिभद्रसूरि का उद्धार है। 6. जीतकल्प -- इसके रचयिता भाष्यकार जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण हैं। इसमें 103 गाथायें हैं। कुछ विद्वान इसके स्थान पर पंचकल्प नाम देते हैं। प्रकीर्णक -- प्रकीर्णक का अर्थ है विविध। इनकी संख्या हजारों में है, परन्तु क्लभीवाचना में 10 प्रकीर्णकों को मान्यता दी गई थी। वर्तमान में मुख्य रूप से 10 प्रकीर्णक माने जाते हैं। यद्यपि इनके नामों में एकरूपता नहीं है फिर भी निम्न 10 प्रकीर्णक प्रमुख है जो मूर्तिपूजकों को विशेष रूप से मान्य है -- 1. चतुःशरण (कुशलानुबंधि अयययन ) -- इसमें 63 गाथायें है। इसमें अरहंत, सिद्ध साधु और केवलिकथित धर्म को शरण माना गया है। अतः इसे चतुःशरण कहते हैं। 2. आतुरप्रत्याख्यान (अन्तकाल प्रकीर्णक) -- इसमें 70 गाथायें तथा कुछ गद्य भाग है। इसमें बालमरण और पण्डितमरण का विवेचन है। 3. महाप्रत्याख्यान -- इसमें 142 गाथाओं द्वारा प्रत्याख्यान (त्याग) का वर्णन किया गया है। 4. भक्तपरिशा -- इसमें 172 गाथाओं द्वारा भक्तपरिज्ञा नामक मरण का वर्णन किया गया है। 5. तन्दुलवैचारिक -- इसमें 139 गाथायें तथा कुछ सूत्र है। इसमें नारी जाति के विषय में तथा गर्भ के विषय में वर्णन है। 100 वर्ष की आयु वाला मनुष्य कितना तन्दुल (चावल) खाता है, इसका विचार होने से इसका नाम तन्दुलवैचारिक पड़ गया है। 6. संस्तारक -- इसमें 123 गाथायें हैं जिनमें मृत्यु के समय अपनाने योग्य संस्तारक (तृण आदि की शय्या) का महत्त्व वर्णित है। 7. गच्छाचार -- इसमें 137 गाथायें हैं जिनमें गच्छ (समूह) में रहने वाले साधु-साध्वियों के आचार का वर्णन है। यह महानिशीथ, कल्प (बृहत्कल्प) तथा व्यवहारसूत्र के आधार पर लिखा गया है। 8. गणिविद्या --- इसमें 82 गाथायें हैं जिनमें ज्योतिष, विद्या का वर्णन है। 9. देवेन्द्रस्तव -- इसमें 307 गाथाओं द्वरा 32 देवेन्द्रों का वर्णन किया गया है। 10. मरणसमाधि (मरणविभक्ति) --- इसमें 663 गाथायें हैं। इसमें समाधिमरण का 14 द्वारों में विवेचन किया गया है। 42 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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