Book Title: Shvetambar Digamber Part 01 02
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Mafatlal Manekchand Shah

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar प्राक् कथन विक्रम सं. १९९५ के वैशाख-ज्येष्ठ महिनेमें हम देहलीमें अवस्थित थे। उस समयं एक रोज एक बन्द लिफाफा मेरे पर आया । उसमें एक पत्र था, जिसे स्थानकमार्गी सम्प्रदायके माननीय प्र०व० पं० चौथमलजीस्वामी के साथवाले मुनि सुखमुनिजीने भेजवाया था । वह पत्र निम्न प्रकार है "बडौत (मेरठ) ता. ३-६-३८ इ. "श्रीमान् दर्शनविजयजी महाराज ! ___ "सादर वन्दन । "निवेदन है कि + + ++ + उस 'कल्पित कथा समीक्षा' नामक पुस्तक में जैनागमों के विरुद्ध जो जो बातें लिखी गई हैं उनका प्रत्युत्तर क्या आपने दिया है ! यदि नहीं तो क्यों ? क्या उन बातों का प्रत्युत्तर देनेका साहस नहीं है ? यदि है, तो कमर कस कर तैयार हो जाइयेगा। और आगमविरुद्ध तथा श्वेताम्बर समाज के विरुद्ध जो जो बातें उन्होंने लिखीं हैं उनका मुंहतोड उत्तर अवश्य दीजिएगा। तभी पंडिताई सार्थक होगी। ऐसा महाराज श्री सुखमुनिजीने फरमाया है । पत्रोत्तर नीचे के पते पर दीजिएगा। "लाला न्यायतसिंहजी मोतीराम जैन. मंडी आनंदगंज बडौत (मेरठ) + + + + + भवदीय, दीपचन्द सुराना" उन मुनिओंकी इच्छा थी कि मैं कुछ लिखुं । अतः मैंनें, कुछ लिखु उसके पहिले, दिगम्बरीय शास्त्रोंका विशेष अध्ययन किया । और इस विशेष अध्ययनके फल स्वरूप, खण्डनमण्डन के रूपमें नहीं किन्तु पारस्प For Private And Personal Use Only

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