Book Title: Shrutsagar Ank 2012 11 022
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २ www.kobatirth.org संपादकीय परम कृपालु परमात्मा महावीरस्वामी सम्पूर्ण संसार में अपने केवलज्ञान के द्वारा ज्ञान का प्रकाश फैला रहे थे और भव्य जीव अपनी अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर कर अपनी आत्मा का कल्याण कर रहे थे, आश्विन अमावस्या के दिन प्रभु के निर्वाण के पश्चात् उनका जीवन दीप बुझ जाने से अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर करने के लिए दीपों की शृंखला ज्ञानदीप के रूप में जलाई गई, उनके निर्वाण दिवस की स्मृति में प्रति वर्ष इस दिन ज्ञानदीप जलाकर दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा। जैसा कि हम सब जानते हैं कि प्रभु महावीरस्वामी के निर्वाण के पश्चात् उनके प्रथम गणधर गौतमस्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी, इस स्मृति में भी ज्ञानदीप जलाया जाता है। वैदिक परम्परा में चाहे जिस स्वरूप में दीपावली मनाई जाती हो किन्तु जैन परम्परा में इसे ज्ञानदीप के रूप में ही मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाने वाला महापर्व ज्ञानपंचमी सौभाग्य पंचमी के रूप में भी ख्याति प्राप्त है। यह तिथि ज्ञान और सौभाग्य की वृद्धि करने में सक्षम है। इस दिन हम श्रुतज्ञान की पूजा-अर्चना करते हैं। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ज्ञान महाशक्ति है, अनादिकाल के प्रवाह से मिथ्यात्व, कषाय आदि के आवरणों से दबी हुई है। उसे विकसित करने के लिए उचित काल में योग्य साधना करनी चाहिए क्योंकि यह सर्वमान्य है कि साधना में व्रत विधान प्रक्रिया से मनोयोग उत्कृष्ट होता है। पूर्वाचार्यों ने विभिन्न परीक्षणों के पश्चात् साधना व्रत आदि का विधान किया है। इसी शृंखला की कड़ी के रूप में दीपावली और ज्ञानपंचमी महापर्व विख्यात है । नवम्बर २०१२ आत्मा का मूल गुण अनन्तचतुष्टययुक्त है, किन्तु अनन्तकाल से मिथ्यात्व कषाय, अविरति, योग आदि में परिणत होकर अपने मौलिक स्वरूप को भूलता हुआ ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता जाता है, इसीलिए आत्मा अज्ञानी रहता है। पुण्य के उदय से एवं सद्गुरु के सत्संग में अपने सच्चे स्वरूप को समझता है, तब अपने वास्तविक स्वरूप की प्राप्ति हेतु देव गुरु एवं धर्म की शरण ग्रहण कर पूर्वाचार्यों द्वारा प्रणीत साधना-व्रत आदि के द्वारा ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय करते हुए अपने मूल रूप को प्राप्त करता है और मानव जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करता है । + लेख ૧. નવપદ નિર્વાણપદ અને જ્ઞાનપદનાં પર્વ ૨. રાજા શ્રીપાળનાં ન્યારાં જીવન રહસ્યો हमारे सद्भाग्य से परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य भगवन्त श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. कोबातीर्थ में विराजमान हैं और उनकी अमृतमयी वाणी का लाभ हमें प्राप्त हो रहा है। तो आइए हम सभी दीपावली, गौतमस्वामी के कैवल्य प्राप्ति एवं ज्ञानपंचमी महापर्व के मंगलमय अवसर पर श्रुतज्ञान का दीप घर-घर जलाएँ एवं परम कृपालु परमात्मा महावीरस्वामी द्वारा प्रतिपादित श्रुतज्ञान जन-जन तक पहुँचे, ऐसा प्रयास करें। विक्रम संवत् २०६९ के रूप में आ रहा नूतनवर्ष आप सभी के लिये मंगलमय एवं सुख-समृद्धि संपन्न हो तथा इस वर्ष में आप सभी के द्वारा आत्मश्रेयार्थ किये गये कार्य सफलता दायक हो यही मंगलकामना है। हम पिछले फरवरी माह से श्रुतसागर का नियमित प्रकाशन कर रहे हैं तथा आपकी सेवा में उपस्थित हो रहे हैं। हम अपने सुविज्ञ पाठकों से निवेदन करते हैं कि हमारा प्रयास आपको कैसा लगा, इसमें किस प्रकार के सुधार की आवश्यकता है, इस हेतु आप अपने बहुमूल्य सुझाव हमें भेजने की कृपा करें। साथ ही आप अपने मौलिक लेख टाइप किया हुआ या कागज के एक ओर हाथ से लिखा हुआ भिजवाएं, हम उसे अपनी पत्रिका में यथायोग्य प्रकाशित करेंगे। पुनः नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनाओं सहित । अनुक्रम For Private and Personal Use Only ૩. દિવાળી : ભગવાન મહાવીરની સાધના અને નિર્વાણનું તેજ પર્વ હિરેન દોશી ४. ज्ञानपंयभी ૫. જ્ઞાનમંદિર : સંક્ષિપ્ત અહેવાલ ઑક્ટો. ૨૦૧૨ लेखक કનુભાઈ શાહ आल. प्रद्युम्नसूरि म.सा. आ. ल. पद्मसागरसूरि म. सा. पृष्ठ ४ 4 ८ ૧૫ ૧૬

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