________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुचरण से प्रभुचरण तक गुरुवचन से प्रभुवचन तक गुरु के शब्द को सहन करें, यह तो चोट है. तब आत्मा का विकास होता है. निर्माण होताहै. D गुरु के शब्द मेरे लिए आशीर्वाद स्वरूप हैं. गुरु शब्द जब मिठाई जैसे लगें समझना मेरा आत्मकल्याण रोगा. भूलों के संस्कार लेकर ही हम जगत् में आए हैं. हर आदमी भूलों से भरा है, परंतु वह सचमुच महान व होनहार है जो भूलों से कुछ न कुछ सीखता है और उन्हें सुधारने का प्रयत्न करता है. प्रलोभन ऐसी चीज है, उस प्रलोभन के आगे सारा जीवन उस भय के अंदर रहकर के व्यक्ति पूर्ण कर देता है. कभी न कभी वह भय मृत्यु या असमाधि का कारण बनता है. जब तक पाप का भय अंदर तक प्रवेश नहीं करेगा, तब तक अभय की प्राप्ति नहीं होगी. परमेश्वर का प्रेम और अनुराग भी नहीं मिलेगा. आरोग्य विषय-पोषण के लिए नहीं धर्म साधना का एक साधन है. ये समझ कर के आरोग्य की सुरक्षा रखनी है. जहाँ आत्मा का अहित होता है, वह ज्ञान हमेशा अज्ञान माना गया है, वह ज्ञान आत्मा के लिए शत्रु तुल्य बन जाता है. संसार के रेगिस्तान में आत्मा को शांति देने वाला धर्म आपके पास न हो तो आत्मा प्यास से तड़प कर, मरकर दुर्गति में चली जाएगी. अंक प्रकाशन सौजन्य : श्री रश्मिकांतभाई कामदार परिवार Rushab Ship Consultant, Inc., 43, Jonanthan Drive, Edison, NJ 08820, USA BOOK-POST / PRINTED MATTER For Private and Personal Use Only