Book Title: Shrutsagar Ank 1999 09 009
Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर, श्रावण २०५५ पर्युषण : एक सम्पूर्ण क्रान्ति हिंसा का सम्बन्ध किसी को मारने से नहीं, वरन् हमारे विचारों से है बाह्य जगत् में परिलक्षित होती हिंसा तो आदमी के अन्तर्जगत् में उत्पन्न होते और घूमते विचारों की अभिव्यक्ति मात्र है. प्रलय-सृष्टि, विकास- ह्रास, सुख-दुःख, अपना-पराया सब अपने भीतर होते हैं. दृश्यजगत् में आकार लेती घटनाएं तो केवल उनकी भौतिक निष्पत्तियां ही हैं, जो कि स्थूल परिणामों के अतिरिक्त अधिक कुछ नहीं है. अन्तर्जगत् का परिवर्तन ही वास्तविक क्रान्ति है. भौतिक कलेवर तो अन्तर्मन के बदलते ही अपने आप बदल जाएगा. इसीलिए अहिंसा पारम्परिक नहीं, मौलिक होनी चाहिए.' जीवन की महत्ता आन्तरिक संयम और अनुशासन से है. इन अर्थों में पर्युषण का आगमन अपने आप में एक विराट् घटना है- इतनी महान घटना कि इतिहास की कोई भी घटना इसके सामने गौण प्रतीत होती है. अन्य सभी तथाकथित रिश्तों/सहारों / सम्बंधों / आधारों से टूटकर आदमी का अपने समीप आना, समग्र अस्तित्व और प्रकृति के समीप आना तथा इस परम समीपता में सतत निवास करना पर्युषण पर्व की उपादेयता है. अहिंसा इस पर्व का भावना - पक्ष है और संयम इसका क्रियापक्ष, किन्तु अपने आप में यह निष्पक्ष है. आज विश्व, देश और समाज- सभी हिंसा से पराजित है. निरन्तर बढ़ती हिंसा ने जन-जीवन को संत्रस्त कर रखा है. हिंसा की व्यापकता ने मानव के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है. ऐसे में सरकारें अस्थिर हो रही हैं. अस्पष्ट जनादेश मिल रहे हैं. तानाशाही के आधार पर राष्ट्र या राज्य को हड़पने की घटनाएं बन रही हैं. माना कि हिंसा रोकने के लिए नये कानून बनाए जा सकते हैं, पुराने कानूनों में परिवर्तन किया जा सकता है, उनको तोड़ने वाले के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था निर्धारित की जा सकती है, पुलिस या सेना को तैनात किया जा सकता है, आम आदमी को आत्म-सुरक्षा के साधन मुहैया कराए जा सकते हैं, किन्तु इससे ज्यादा कोई भी सरकार कुछ नहीं कर सकती. वस्तुतः ये सभी उपाय शासन के प्रतिफल हैं. जब आत्म-अनुशासन टूटता है, तब शासन का उदय होता है. आत्म-अनुशासन का टूटना परतंत्र और पराजित होने की ही प्रक्रिया है. शासन परतंत्रता का ही एक रूप है. सम्पूर्ण स्वतंत्रता तो अनुशासित और संयमी जीवन में निहित है. जब तक आदमी का भीतरी मन अहिंसक नहीं बन जाता, बाहरी हिंसा जारी ही रहेगी. हम बाह्य परिवेश को तो बदल रहे हैं, पर आन्तरिक व्यवस्था को परिवर्तित करने का आंशिक प्रयत्न भी नहीं हो रहा. गौरतलब है कि समस्त व्यवस्थाओं, कानूनों, नीति-नियमों के पीछे आदमी खड़ा है और वह अपनी अज्ञानतावश भ्रान्तधारणाओं में उलझ रहा है, अपने प्रमाद से ग्रस्त है, पूर्वाग्रहों को लेकर चल रहा है, स्वार्थ ने उसे जकड़ लिया है. जब तक वह भीतर से नहीं बदल जाता, व्यवस्थाओं का पालन न तो वह स्वयं कर पाएगा और न ही दूसरों से करवा पाएगा. सारी समस्याएं अन्तर्मन की हैं, अतः क्रान्ति का उद्भव अन्तर में होना परम आवश्यक है. हृदय परिवर्तन ही हमारी समस्त समस्याओं के स्थायी समाधान का मार्ग प्रशस्त कर सकता है. हम समाज- क्रान्ति और राष्ट्र - क्रान्ति की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, किन्तु स्वयं आदमी को, जो कि समाज और राष्ट्र के अस्तित्व का अभिन्न और अपरिहार्य अंग है, अगर क्रान्त न कर पाए तो अन्य सब कुछ कर देने पर भी क्या फर्क पड़ेगा ? For Private and Personal Use Only / पर्युषण पर्व एक ऐसी विराट् मानसिक क्रान्ति का द्योतक है, जिसके समक्ष इतिहास के युगान्तकारी परिवर्तन भी बालकों के खेल जैसे मालूम पड़ेंगे. आज जरूरत है उसकी अन्तश्चेतना को पकड़कर अपने जीवन में साकार करने की. हकीकत में तभी हमारे द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व की महत्ता लोकजीवन में सार्थक बन सकेगी.

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