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श्रुतसागर, श्रावण २०५५ कल्याणसागरसूरीश्वरजी म. सा. उपस्थित थे. श्री हेमन्तभाई कहते हैं कि आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. के साथ जो प्लान तया हआ था वह एक छोटी सी योजना थी जिसमें मात्र ६५ लाख रू.की लागत से एक छोटा सा मन्दिर, ज्ञानभण्डार, छोटा उपाश्रय, भोजनशाला तथा प्रिन्टिंग प्रेस की व्यवस्था करने की बात सोची गई थी. उस समय कम्प्यूटर का ख्याल भी नहीं था और न ही संग्रहालय या ज्ञानमन्दिर का जो स्वरूप आज है वैसी कोई कल्पना थी. श्री हेमन्तभाई के अनुसार देरासर का निर्माण चल ही रहा था कि गुरूदेव श्री कैलाससागरसूरि म. सा. का अहमदाबाद में २१ मई १९८७ को कालधर्म हुआ. उनका अन्तिम
1 में करना तय हआ और दूसरे दिन २२ मई १९८७ को कोबा में अहमदाबाद नगर की विकट स्थिति होते हए भी अंकर से पार्थिव देह यहाँ लाकर अन्तिम संस्कार हआ.
प्रस्तावित मन्दिर के स्थान पर विशालकाय महावीरालय का निर्माण तथा आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर का बहुद्देशीय विकास, आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मारक मन्दिर (गुरुमन्दिर), जैन आराधना भवन आदि का निर्माण हुआ है, गुरु देव आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने इस तीर्थ के विकास के लिए जो भी काम किया है वह जैन समाज में २०वीं शताब्दी की अनूठी घटना मानी जाएगी कार्य करते-करते, समय-समय पर उपयोगिता की दृष्टि से मूल परियोजनाओं में अनेक परिवर्तन किये गये. इसी कारण इस केन्द्र का सराहनीय विकास इतनी अल्प अवधि में हो सका है तथा आज यह इस देश में न केवल जैन समाज बल्कि देश-विदेश के समस्त शिक्षित वर्ग में अपना अद्वितीय स्थान प्राप्त कर चुका है. ___ श्री हेमन्तभाई ने इस केन्द्र के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के रूप में इसकी प्रवृत्तियों के संरक्षण, संवर्धन एवं विकास में अपना उत्कृष्ट योगदान कर जिन शासन की सेवा का अनुपम लाभ लिया है. बोरीज तीर्थ के विकास एवं आयोजन में श्री हेमन्तभाई का उत्कृष्ट योगदान प्राप्त हो रहा है. आपश्री अनेक जैन संस्थाओं से जुड़े हैं तथा अनेकों संस्थाओं के ट्रस्टी हैं जिनमें से कुछ संस्थाओं के नाम अग्रलिखित हैं- शेठ आणन्दजी कल्याणजी पेढी, दलीचंद्र वीरचंद्र श्रोफ ट्रस्ट (सूरत), तारंगा तीर्थ भोजनशाला, भानुप्रभा जैन सेनेटोरियम, एल. डी. चेरेटेबल ट्रस्ट, प्रेमचंदनगर-सेटेलाईट जैन मन्दिर इत्यादि. आणन्दजी कल्याणजी पेढ़ी के विविध कार्यों व नवीन विकासलक्षी परियोजनाओं में आपका उल्लेखनीय योगदान रहा है जिसमें तारंगा में धर्मशाला, शत्रुजय तलेटी में मण्डप-विस्तार एवं नवीन द्वार-निर्माण, चौमुखजी का द्वार, पहाड़ पर विसामा घेटीपाग के पास द्वार, स्टाफ क्वार्टर्स का निर्माण, पहाड़ पर पानी चढ़ाने की व्यवस्था, तलेटी में पारणाभवन, आराधना भवन का निर्माण, शेरीसातीर्थ में रंगमंडप एवं उपाश्रय का निर्माण आदि प्रमुख हैं.
हंसमुख स्वभाव के श्री हेमन्तभाई अपने अधीनस्थों से कार्य लेने में माहिर कहे जा सकते हैं. उनके स्वभाव की एक विशेषता यह कि यदि वे किसी पर नाराज भी हुए हो तो कुछ मिनट बाद ही भूल भी जाते हैं यह स्वभाव निस्संदेह उनकी गुणग्राहकता का परिचायक तथा उनकी सफलता का मूल मन्त्र लगता है जिसका अनुकरण किया जाना चाहिए. वे अपने व्यवसायी तथा धर्मनिष्ठ समाजसेवी जीवन के अतिरिक्त व्यक्तिगत जीवन में प्रकृति के प्रेमी भी हैं. गुजरात स्टेट हार्टिकल्चर सोसायटी के प्रथम सेक्रेटरी रहे हैं तथा ३० वर्षों तक आपके मार्गदर्शन में अहमदाबाद की जनता ने विविध प्रकार के फूलों, वनस्पतियों एवं साग-सब्जियों की प्रदर्शनियों का अवलोकन किया है. उन्होने लॉ गार्डेन के सामने कार्पोरेशन से विनती कर -एक रुपये के टोकन भाड़े पर सोसायटी के लिए जमीन उपलब्ध करा कर अहमदाबाद के पर्यावरण सुधार में उल्लेखनीय योगदान किया है. पेड़-पौधों वनस्पतियों के साथ उनका अटूट सम्बन्ध लगता है. उन्हें कला शिल्प, चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष अभिरुचि है. देरासरों का निर्माण एवं संरक्षण कार्य करते-कराते शिल्प स्थापत्य के अधिकारी विशेषज्ञ बन गए हैं. सुबह से देर रात तक विविध कार्यों में तल्लीन श्री हेमन्तभाई . प्रतिदिन २०-२५ रोगियों को निःशुल्क होमियोपैथी चिकित्सा एवं मार्गदर्शन देने के लिए समय निकालते हैं. उनकी धर्मपत्नी सौ. हंसाबेन एक धर्मनिष्ठ गृहणी हैं जिनका श्री हेमन्तभाई को अपने [शेष पृष्ठ १५ पर
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