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श्रुतसागर, श्रावण २०५५ संस्था को मिला आत्मीय स्पर्श: अग्रणी संघ सेवक : श्री हेमन्तभाई चीमनलाल ब्रोकर (राणा)
___राणा परिवार का अहमदाबाद के जैन समाज में पेशवा काल से एक उत्कृष्ट स्थान रहा है. अहमदाबाद शहर में स्थित खेतरपाल की पोल में आज से लगभग १३ पीढ़ी पूर्व के श्री जगजीवनदासजी के समय से इसका इतिहास ज्ञात होता है. इन्हीं श्री जगजीवनदासजी के कुल में स्व. पोपटलाल हेमचंद जैसी श्रेष्ठ हस्ती का जन्म हआ था श्री पोपटलाल हेमचंद व्यवसायी होने के साथ ही धार्मिक एवं विद्याप्रिय श्रावक थे. उन्होंने किसी भी व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने के लिए जो भी हो सकता था किया. वे शिक्षा के क्षेत्र में अपने
सहयोग के लिए तन-मन-धन से सदैव तत्पर रहते थे. अपने घर पर अच्छे-अच्छे लोगों को आमन्त्रित कर सत्संग करते थे. पं. सुखलालजी के साथ उनका अच्छा साहचर्य था. १९३५ में उन्होंने पर्युषण व्याख्यान माला का प्रारम्भ किया तथा गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी में पोपटलाल हेमचंद व्याख्यान माला प्रारम्भ कराकर देश के दूर-दूर के विद्वानों को अहमदाबाद के जैन समाज के सामने प्रस्तुत करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी. समाजसेवा की भावना से एक सेनीटोरियम तथा एलिसब्रिज अहमदाबाद में श्मशानगृह का निर्माण कर लोगों की परेशानियों को दूर की. इससे पूर्व शव के अन्तिम संस्कार के लिए नदी पार ले जाना पड़ता था. आपके अविस्मरणीय सहयोग से अहमदाबाद में श्री पोपटलाल हेमचंद जैन नगर में जैन देरासर एवं उपाश्रय का निर्माण हुआ है.
उदार शासनप्रिय धर्मनिष्ठ श्री पोपटलाल के पुत्र श्री चीमनलालजी के यहाँ उनकी धर्मपत्नी श्रीमती लीलावतीबेन की कुक्षि से ९ मई १९३५ को अहमदाबाद में एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम हेमन्त रखा गया. श्री हेमन्तभाई को अपने माता-पिता तथा दादा-दादी के पास उच्च धार्मिक-नैतिक शिक्षा प्राप्त हुई और आपने सी. एन. हाईस्कूल, अहमदाबाद एवं राजकुमार कॉलेज, राजकोट में अध्ययन किया. स्नातक उपाधि हेतु विज्ञान विषय में रसायन एवं भूस्तर शास्त्र का अध्ययन करने वाले श्री हेमन्तभाई को व्यावहारिक जीवन में प्रवेश करने पर आचार्य भानुचन्द्रसूरि म. सा. के साथ १९५२ में परिचय हुआ तथा धार्मिक प्रवृत्तियों में संलग्न होने की धुन चढ़ी उनकी प्रेरणा से श्री हेमन्तभाई १९६८ में श्री भानुप्रभा जैन सेनिटोरियम टस्ट के टस्टी बनें तथा १९७२ में इसका निर्माण पूरा हआ साथ ही १९७२ में सरत नगर के अठवा गेट विस्तार में दलीचंद्र वीरचंद्र श्रोफ ट्रस्ट के अन्तर्गत देरासर का निर्माण भी कराया. ___श्री हेमन्तभाई १९७५ में उस्मानपुरा, अहमदाबाद में उपधान के समय परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी, प. पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसरीश्वरजी म. सा. (उस समय मुनि) के सम्पर्क में श्री शान्तिलाल मोहनलाल के साथ आयें तथा थोड़े ही समय में आचार्य भगवन्त की विविध परियोजनाओं से जुड़ गये. आचार्यश्री की इच्छा थी कि अहमदाबाद गांधीनगर मार्ग पर उपनगर में एक छोटा सा देरासर तथा एक अभ्यास केन्द्र व ज्ञानभण्डार हो. इस योजना को उनके प्रशिष्य आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. का भी अनुमोदन था जिसे पूरा करने का भार भी श्री शान्तिलाल मोहनलाल शाह एवं श्री हेमन्तभाई पर आया. इस कार्य के लिए जमीन खोजना प्रारम्भ हुआ तथा तीन-चार जमीनों के प्रस्ताव भी आयें और अन्ततोगत्वा १९८० में स्व. रसिकलाल अचरतलाल शाह द्वारा कोबा में सहर्ष प्रदत्त लगभग १६,००० यार्ड जमीन पर देरासर बनना तय हुआ. इसे तीर्थ के रूप में विकसित करने के लिए गच्छाधिपतिश्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. की प्रेरणा से श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र- कोबा की स्थापना हुई. इसकी शिलारोपण विधि में प.पू. आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. एवं श्री
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