________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SHRUTSAGAR
11
कृतिविषयगत संप्रति महाराजाना सुकृतोनी टुंकी नोंध“वीर निर्वाण पछी हवड़ जुओ, बिसइ वरसनइ अंतरि हुओ । संप्रति राजा नाम प्रसिद्ध, जेणि बहु उत्तम करणी कध लख्य बारनइ पंच हजार, नविन प्रासाद कराव्या सार । छत्रीस सहिस्स वली जीर्ण उधार, प्रासाद कराव्या अति उदार बि कोडी बिंब भराव्या तदा, पंचवीस लाख वली उपरि मुदा I ते वारानी प्रतिमा एह, चिति म धरस्यो अवर संदेह"
November-2018
॥६३॥
॥६४॥
॥६५॥
वीर निर्वाण पछी बसो वरसना अंतरे संप्रति नामे प्रसिद्ध राजा थयो जेणे अनेक उत्तम कार्यो कर्यां । तेमां
I
१२ लाख ५ हजार नूतन प्रासाद कराव्या । ३६ हजार जीर्णोद्धार कराव्या । २ करोड २५ लाख प्रतिमा भरावी। ते समयनी आ प्रतिमा छे, एमां कोई संशय नही । प्रत परिचय:
प्रस्तुत कृतिथी संबंधित एक प्रत आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबामां प्रत संख्या-३१४४६ पर उपलब्ध छे । आ प्रत श्रीगुणविजयजीना शिष्य गणि श्रीसंघविजयजी द्वारा श्री अणहिल्लपुर पाटण मध्ये श्री खेतलवसही पाडामां रहेनार सुश्रावक, पुण्यप्रभावक, श्री देवगुरुभक्तिकारक साह नानजी ना पठन हेतु लख्यानो उल्लेख छे ।
For Private and Personal Use Only
त्रण पनानी संपूर्ण प्रतमां आ एकमात्र कृति लखायेली छे। प्रत्येक पाने १५ थी १६ पंक्तिओ छे अने प्रति पंक्ति ४८ से ५० अक्षर संख्या छे । वि.सं. १६७०ना माह शुक्लपक्ष १५ अने शनिवारना दिवसे कर्ताना स्वहस्ते लखायेली आदर्श प्रत छे ।
प्रतनी स्थिति सारी अने अक्षर सुवाच्य छे। मध्यमां खाली चोरस फुल्लिका तथा विशेष पाठने गेरु लाल रंगथी अंकित करेल छे । ग्रंथ रचना अने लेखन वच्चे मात्र चारेक महिनानुं अंतर जणाय छे। गणिश्रीए पाटण चातुर्मास कर्यं होय अने ते समये ज आ कार्य थयुं होय एवं अनुमान थई शके । आदर्श प्रत होवाथी पाठो प्रायः शुद्ध छे आ कृतिनी अन्य प्रत हजु सुधी उपलब्ध थवा पामी नथी ।
प्रत उपलब्ध करावा बदल आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबानो हार्दिक आभार व्यक्त करुं छु ।