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श्रुतसागर
नवम्बर-२०१८ सोळमा शतकनी गुजराती भाषा
मधुसूदन चिमनलाल मोदी (गतांकथी आगळ...)
पंदरमा सैकानी भाषाथी सोळमा सैकानी भाषा घणी रीते जुदी पडे छ । हाथप्रतोना पूरावा ध्यानमां लइए तो सोळमा सैकानी भाषानो ढाळ अत्यारनी गुजराती तरफ वधारे छे । रहइ, तउ, थउ इत्यादि विभक्तिदर्शक अनुषंगी शब्दो अदृश्य थाय छे; छइ अने होइ सहायकारक क्रियापद तरीके प्रयोग वधतो जाय छे अने धातुना काळनां रूपोना फेरफार पण अत्यारना ढाळ तरफ वळे छ। काठाआवाडी असरने लीधे ज आ होय एम मानवाने कांइ पण कारण नथी। __रा. शास्त्रीनी ऐतिहासिक दलील टकी शके एवी नथी। मुग्धावबोध-औक्तिक सं. १४५० नुं ने महमद बेगडाए काठिआवाडने गुजरात तल साथे जोडयु सं. १५१२मां एटले बासठ वर्षनो गाळो । काठिआवाडमां द्वारिका, शंखोद्धार, सोमनाथ ए हिंदुओनां पवित्र स्थानो ज्यां लोकोनी अवरजवर सारा प्रमाणमा हती। पालीताणा अने जूनागढ ए जैनोनां पवित्र स्थान ज्यां जैनोना अनेक संघ जता। आ काळना एक संघD वर्णन प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह (गा. ओ. सी.) मां पेथडरास मां आप्यु छे । ते उपरांत सं. १३७१ नो समरारास, सोलण नी चर्चरिका ते ज संग्रहमां जोवा । काठिआवाडनो अने गुजरातनो संबंध राजकीय अंधाधुंधी होवा छतांय पण लोकोना अवरजवरथी तो चालु ज हतो; एटले रा. शास्त्रीनुं ऐतिहासिक प्रमाण प्रमाणाभास ठरे छ।
आथी तळ-गुजरातनी भाषा काठिआवाडी असरे नवा संस्कारने पामी ए दलील गळे उतरे एवी नथी ज अने वळी एम कहेवं के 'प्रेमानंदे ते नरसिंहनी वाणी पर मुग्ध थई सं. १८०० पछी नरसिंहनी भाषाने साहित्यनी भाषा तरीके स्वीकारी लीधी' - ए जरा उत्साहातिरेक छ।
४. संस्कृता गुर्जरी' अने प्राकृता गुर्जरी'-अथवा तो रा. शास्त्रीना भेद ‘प्राकृत प्रचुर तल गुजरातनी साहित्य भाषा' अने संस्कृत प्रचुर तल गूजरातनी साहित्य भाषा' ए भेद पण तद्दन अस्वीकार्य छ । आ भाषाभेदनुं निरसन मने तो पुनरुक्ति ज लागे छे; कारण के सं. १९२२ मां (इ. स. १८६६) लखेला स्व. व्रजलाल कालिदास शास्त्रीना 'गुजराती भाषानो इतिहास' (प्र. गु. व. सो. अमदावाद) मां पान ६३ पर विधान करवामां आव्यु छे “हवे जूनी तथा नवी गुजराती भाषा ते कई ते जणाववा माटे जूनां पुस्तकोनां थोडां थोडां वाक्य लख्यां छे । पूर्वे जैन अने ब्राह्मणो एक ज रीतिए लखता
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