Book Title: Shrutsagar 2018 11 Volume 05 Issue 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SHRUTSAGAR
November-2018 हता” त्यार पछी स्व. शास्त्रीजी दाखलाओ टांकी आ बाबत सिद्ध करी बतावे छे। आ पछी समजातु नथी के संस्कृत प्रचुर गुर्जरीना भेदतुं निरसन क्यारनु य थइ गएल छे छतांय आ भेद फरीथी ऊभा करी शाथी चर्चवामां आवे छे। जैनो पोताना धर्म संबंधी काव्यो लखे तेमां पोताना धर्मनी प्राकृत परिभाषा आवे एटले तेने प्राकृतप्रचुर गुजरातनी साहित्य भाषा ए नाम आपी जुदो भेद न पडाय। ए तो ब्राह्मणो पोतानां लखाणोमां पोतानी परिभाषा वापरे अने ते काळनो वैद्य-जैन होय के ब्राह्मण-वैदकनी परिभाषा वापरे तेथी कांइ भाषा भेद पडाय नहि। ब्राह्मण लेखकोर्नु सामान्य रीते तत्सम संस्कृत शब्दो तरफनु वलण खास देखाई आवतुं नथी दि. ब. के. ह. ध्रुव संपादित प्राचीन गुर्जर काव्यो' (गु. व. सो.) के ‘कान्हडदे प्रबंध' विगेरे काव्योमां तद्भव शब्दोनो प्रयोग ओछो नथी। भालणनी 'कादंबरी' संस्कृतमाथी गुजरातीमां ऊतारेली एटले तत्सम शब्दो तेमां वधारे छे। देशी, ढाल, राग इत्यादिमां तो जैनोए लखेलां तेम ब्राह्मणोए लखेलां लखाणो सरखां छे। एटले आ प्रकारना भेद निर्माल्य ठरे छ।
आम छतांय पंदरमा अने सोळमा सैकामां ब्राह्मणे य नहि अने जैने य नहि एवा पारसीओनां गुजराती लखाणो मळे छे, जेना उतारा हुं सालवार नीचे आपुंछु । मने तो शैली के भाषा ए बन्नेमां य ए लखाणो ब्राह्मण के जैन लेखकोनां लखाणोथी जुदां पडतां लागता नथी,
अग्विीरा Collected Sanskrit Writings of the Parsis Part V जूना गुजरातीनो विभाग [२४] :
१ पछइं मई तेह पापी मनुष्यतणा आत्मा दीठा जे मंडक मांडा हाथ धरी शुनक-लुंडी-रहइं घाली अछइ। अनइ शुनक-लुंडी तेह मांडी नही पाइं अनइ तींह मनुष्यतणां हीआं-ऊपरि चडी पगे करी पेट विभाडइ फाडइ अछइ॥
२ मई पूछइउं जउ ईंहतणे तनु शरीरइ कइसउं पाप कीधउं जीणइ पाप करी आत्मा रहइ इसउ दोहिलउ निग्रह कीजइ अछइ॥
३ पुण्यात्मक श्रोश अनइ आदर इअज्द बोलिया जउ एह तीह पापी मनुष्यतणा आत्मा जेहे पृथ्वीमांहि घइर राषणाहार लुंडी षाद्यतु आहारतु अन्यथा कोधां भूषआं मारइया अथवा हणइया मारइया ॥
अइ ने बदले ए : ईंहतणे; तेनी ज पछी आवता शरीरइ नुं पाठांतर शरीरे सदरग्रंथ [२७]; पगे-करी। आ उपरांत [३] जाणे करि-जाणइ= ज्ञायते. हाथप्रत लखाया संवत१५०७ गाम नवसारी।
आ परथी बे वस्तु तरी आवे छे, शैलीमां फेरफार नथी। अइ ने अउ ने बदले ए के
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36